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प्रारम्भिक सूक्ति
यह 'भावपाहुड' है सो सर्वज्ञ की परम्परा से अर्थ लेकर आचार्य ने कहा है इसलिए सर्वज्ञ ही के द्वारा उपदिष्ट है, केवल छद्मस्थ ही का कहा हुआ नहीं है और इसके पढ़ने-सुनने का फल मोक्ष है क्योंकि इसके पढ़ने से शुद्ध भाव होता है और शुद्ध भाव से मोक्ष होता हैऐसे परम्परा से मोक्ष का कारण इसका पढ़नासुनना, धारना एवं भावना भाना है अतः भव्य जीव इसको पढ़ो और सुनो-सुनाओ तथा भाओ और निरंतर अभ्यास करो जिससे शुद्ध भाव होकर मोक्ष को पाकर वहाँ परम आनन्द रूप जो शा रूप जो शाश्वत सुख . उसको भोगो।
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