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गाथा चयन
गाथा १४ - 'दंसेइ मोक्खमग्गं.... अर्थ- जो सम्यक्त्व रूप, संयम रूप, उत्तम धर्म रूप, निर्ग्रन्थ रूप एवं ज्ञानमयी मोक्षमार्ग को दिखलाता है - ऐसे मुनि के रूप को जिनमार्ग में दर्शन कहा है । । १ । ।
गा० १५ –'जह फुल्लं गंधमयं... अर्थ-जैसे फूल गंधमय और दूध घतमय है वैसे ही दर्शन अर्थात् मत में सम्यक्त्व है। वह दर्शन अन्तरंग तो ज्ञानमय है तथा बाह्य मुनि का रूप और उत्क ष्ट श्रावक व आर्यिका का रूप है । । २ ।।
गा० ११ – दिढ़संजम मुद्दाए...' अर्थ-द ढ़ संयम रूप मुद्रा से तो पाँच इन्द्रियों को विषयों में न प्रवर्ताने रूप इन्द्रियमुद्रा है। ऐसे संयम से ही कषायों के वश में न होना-ऐसी कषायद ढमुद्रा है तथा ज्ञान का स्वरूप में लगना -इससे सारी बाह्य मुद्रा शुद्ध होती हैं। जिनशासन में ऐसी जिनमुद्रा होती है । । ३ । ।
गा० २० – संजमसंजुत्तस्स ... अर्थ-संयम से संयुक्त और उत्तम
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