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________________ अष्ट पाहुड़stion स्वामी विरचित o आचार्य कुन्दकुन्द । SEOCE TOVAYANVAR HDool CAMWAVAH Dodle Doc Deo BAVAMANAS 崇崇养崇崇崇崇崇崇崇明藥藥事業業帶男崇勇勇需 सर्वज्ञ और वीतराग इत्यादि अर्थ सहित अनेक नाम हैं। इस प्रकार तो देव जानना। गुरु का स्वरूप-गुरु का भी अर्थ से विचार करें तो वे अरिहंत देव ही हैं क्योंकि मोक्षमार्ग का उपदेश करने वाले अरिहंत ही हैं, वे ही साक्षात् मोक्षमार्ग का प्रवर्तन कराते हैं। अरिहंत के पश्चात् उन्हीं का निर्ग्रन्थ दिगम्बर रूप धारण करने वाले छद्मस्थ ज्ञान के धारक जो मुनि हैं वे गुरु हैं क्यों कि अरिहंत की सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एकदेश शुद्धता उनके भी पाई जाती है और वह ही संवर, निर्जरा एवं मोक्ष की कारण है इसलिए अर्हन्त के समान एकदेश रूप से जो निर्दोष हैं वे मुनि भी गुरु हैं, मोक्षमार्ग का उपदेश करने वाले हैं। ऐसा मुनिपना सामान्य से तो एक प्रकार का है और विशेष से वह ही आचार्य, उपाध्याय और साधु-ऐसे तीन प्रकार का है सो यह पदवी का विशेष है। आचार्य, उपाध्याय एवं साधुओं में निम्न रूप से समानता एवं विशेषता होती है :__ आचार्य, उपाध्याय और साधुओं में समानता इनके मुनिपने की क्रिया एक ही है, बाह्य लिंग भी समान है, पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति-ऐसे चारित्र भी समान ही है, तप भी शक्ति के अनुसार समान ही है, साम्यभाव भी समान है, मूलगुण-उत्तरगुण भी समान हैं, परिषह-उपसर्गों का सहना भी समान है, आहार आदि की विधि भी समान है,सम्यक्त्व, ज्ञान, चारित्र रूप मोक्षमार्ग का साधन भी समान है, ध्याता-ध्यान-ध्येयपना, ज्ञाता-ज्ञान-ज्ञेयपना, चार आराधनाओं का आराधना एवं क्रोधादि कषायों को जीतना इत्यादि मुनियों की प्रव त्ति है सो सब समान है। __आचार्य, उपाध्याय एवं साधुओं में विशेषता-वह विशेष यह है आचार्य-जो १. अन्य को प चाचार अंगीकार कराते हैं, २. उन्हें दोष लगे तो उसके प्रायश्चित की विधि बताते हैं तथा ३. धर्मोपदेश एवं दीक्षा शिक्षा देते हैं वे तो आचार्य होते हैं सो ऐसे गुरु वन्दना करने योग्य हैं। उपाध्याय-जो उपाध्याय हैं वे १. वादित्व, २. वाग्मित्व (वक्तापना) ३. कवित्व एवं ४. गमकत्व (टीका करने की कला)- इन चार विद्याओं में प्रवीण होते हैं। उसमें शास्त्र का अभ्यास प्रधान कारण है। वे स्वयं शास्त्र पढ़ते हैं और दूसरों को पढ़ाते हैं-ऐसे उपाध्याय गुरु वंदन करने योग्य हैं। इनके अन्य मुनिव्रत, मूलगुण एवं वह विशेष उन्हें दोष हैं वे 崇勇兼業助業業助聽器| 崇明藥業業助業樂業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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