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अष्ट पाहुड
अष्ट पाहुड़
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वामी विरचित
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आचाय कुन्दकुन्द
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भावार्थ जीवसमास चौदह कहे हैं-एकेन्द्रिय सूक्ष्म व बादर दो, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय ऐसे विकलत्रय तीन और पंचेन्द्रिय, असैनी व सैनी दो-ऐसे जो सात हुए, वे पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से चौदह हुए। इनमें चौदहवाँ सैनी पंचेन्द्रिय जीवस्थान अरहंत के है। गाथा में सैनी का नाम नहीं लिया और मनुष्य भव का नाम लिया सो मनुष्य सैनी ही होता है, असैनी नहीं होता इसलिये मनुष्य कहनेसे सैनी ही जानना। ऐसे गुणों से सहित स्थापना अरहंत का वर्णन किया।।३६।।
उत्थानिका
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आगे 'द्रव्य को प्रधान करके' अरहंत का निरूपण करते हैं :
जरवाहिदुक्खरहियं आहारणिहारवज्जियं विमलं । सिंहाण खेल सेओ णत्थि दुगंछा य दोसो य।। ३७।। दस पाणा पज्जत्ती अट्ठसहस्सा य लक्खणा भणिया। गोखीरसंखधवलं मंसं रुहिरं च सव्वंग।। ३४।। एरिसगुणेहिं सव्वं अइसयवंतं सुपरिमलामोयं । ओरालियं च कायं णायव्वं अरहपुरिसस्स ।। ३9।। तिकलं।।
जरव्याधिदुःख रहित, अशननीहारवर्जित विमल हैं। नहिं है जुगुप्सा, श्लेष्म, थूक, पसेव नहिं, निर्दोष हैं। ।३७ ।। दस प्राण, छ: पर्याप्तियुत, अठ सहस लक्षण हैं कहे। गोक्षीरशंखधवल रुधिर अरु, मांस है सर्वांग में ।।३8 ।। ऐसे गुणों से सर्व अतिशयवान, अमल सुगन्धयुत। यों जानना औदारिकी, नरदेह अर्हत्पुरुष की ।।३9 ।।
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