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________________ अष्ट पाहुड़ta पाहड़M alirates वामी विरचित आचाय कुन्दकुन्द re.... ४:४४: Noor Dooo Deo BloOCC 添添添添添樂業先养养事業藥勇勇兼事業事業事業 अर्थ अरहंत पुरुष की औदारिक काय ऐसी जानना-१.जरा और व्याधि-रोग सम्बन्धी दुःख जिसमें नहीं है, २.आहार-नीहार से रहित है, ३. विमल' अर्थात् मल-मूत्र से रहित है तथा ४. सिंहाण' अर्थात् श्लेष्म (बलगम), 'खेल' अर्थात् थूक, 'स्वेद' अर्थात् पसेव और 'दुर्गंछा' अर्थात् जुगुप्सा, ग्लानि व दुर्गंधादि दोष जिसमें नहीं हैं। ।३७ ।। पुनः १.दस तो जिसमें प्राण हैं सो द्रव्य प्राण जानना, २.पूर्ण पर्याप्त है, ३.एक हजार आठ लक्षण जिसके कहे हैं और ४.गोशीर अर्थात् कपूर अथवा चंदन तथा शंख सद श जिसमें सर्वांग रुधिर और माँस है।।३८ ।। ऐसे गुणों से सारी ही देह अतिशयों से संयुक्त है तथा निर्मल है आमोद अर्थात् सुगन्ध जिसमें ऐसी औदारिक देह अरहंत पुरुष की जानना। इस प्रकार 'द्रव्य अर्हन्त' का वर्णन किया।।३६ ।। भावार्थ यहाँ द्रव्य निक्षेप नहीं समझना। आत्मा से भिन्न बाह्य देह को प्रधान करके द्रव्य अरहंत का वर्णन है।। ३७-३१।। 器听听听听器凱業听器听听听听听听听听听听听听 उत्थानिका 0 आगे 'भाव को प्रधान करके' निरूपण करते हैं सो भाव में प्रथम ही दोषों का अभाव कहते हैं :मयरायदोसरहिओ कसायमलवज्जिओ य सुविसुद्धो। चित्तपरिणामरहिदो केवलभावे मुणेयव्वो।। ४०।। मद, राग-द्वेष, कषाय मल से, रहित हैं, सुविशुद्ध हैं। मन परिणमन से मुक्त उनका, भाव केवल जानना ।।४० ।। अर्थ 'केवलभाव' अर्थात् केवलज्ञान ही रूप एक भाव के होते हुए अरहंत ऐसे 崇明崇崇明崇崇崇% ४-३७) 藥藥業樂業先崇明
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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