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________________ अष्ट पाहुड़attrate वामी विरचित आचाय कुन्दकुन्द भOM Doo|| Soon Dog/ BloCG भावार्थ केवल नाममात्र ही जो अरहंत हों उनको अरहंत नहीं कहते, उक्त गुणों से जो सहित हों उनको नाम अरहंत कहते हैं।।२७।। उत्थानिका 0 000 आगे फिर कहते हैं :जरवाहिजम्ममरणं चउगइगमणं च पुण्ण पावं च। हंतूण दोसकम्मे हुउ णाणमयं च अरहंतो।। ३०।। जो पुण्य-पाप, जरा, जनम, व्याधि, मरण, चउगतिगमन। औ दोषकर्म विनाश हुए ज्ञानात्म, वे अर्हत हैं। ।३० ।। अर्थ 'जरा' अर्थात् बुढ़ापा, 'व्याधि' अर्थात् रोग, जन्म-मरण, चारों गतियों में गमन, पुण्य तथा पाप और दोषों को उत्पन्न करने वाले जो कर्म उनका नाश करके जो केवलज्ञानमयी अरहंत हुए हों सो 'अरहंत' हैं। भावार्थ पहिली गाथा में तो गुणों के सद्भाव से अरहंत नाम कहा और इस गाथा में दोषों के अभाव से नाम अरहंत कहा। राग, द्वेष, मद, मोह, अरति, चिंता, भय, विस्मय, निद्रा, विषाद और खेद-ये ग्यारह दोष तो घातिया कर्मों के उदय से होते हैं और क्षुधा, त षा, जन्म, जरा, मरण, रोग और स्वेद-ये अघातिया कर्मों के उदय से होते हैं। इस गाथा में जरा, रोग, जन्म, मरण, चार गतियों में गमन का अभाव, पुण्य और पाप, इनका अभाव कहने से तो अघातिया कर्मों से हुए जो दोष उनका अभाव जानना क्योंकि अघातिया कर्मों में इन दोषों को उत्पन्न करने वाली जो पाप प्रक तियाँ उनके उदय का अरहंत के अभाव है और रागद्वेषादि दोषों का घातिया कर्मों के अभाव से अभाव है। यहाँ कोई पूछता है-अरहंत के मरण का और पुण्य का अभाव कहा सो मोक्षगमन होना यह 'मरण' अरहंत के है और पुण्य प्रक तियों का उनके उदय पाया 先崇明崇明崇明崇崇明-%屬崇明崇崇崇明崇崇站 听听听听听听听听听听听听听听听听 崇先养养帶藥崇崇崇崇崇勇攀事業禁禁禁禁禁禁勇
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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