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________________ अष्ट पाहुड़ ate-site स्वामी विरचित . आचाय कुन्दकुन्द . . 9 Dooo HDod Dec DodOS Dool •load उत्थानिका उत्थानिका 听听听听听听听听听听听听听听听听器 ऐसे ही कथन आगे करते हैं सो प्रथम ही 'नाम को प्रधान करके' कहते हैं : दसण अणंत णाणे मोक्खो णट्ठट्टकम्मबंधेण। णिरुवमगुणमारूढो अरहंतो एरिसो होई।। २७।। जो अमित दर्शन-ज्ञान युत, वसु कर्म बंध से मुक्त हैं। आरूढ़ अनुपम गुणों में, ऐसे अहो ! अरहंत हैं ।।२७ ।। अर्थ जिनके दर्शन और ज्ञान तो अनन्त हैं, घातिया कर्मों के नाश से सब ज्ञेय पदार्थों का देखना व जानना जिनके है तथा नष्ट हुआ जो आठों कर्मों का बंध उससे जिनके मोक्ष है। यहाँ सत्त्व की और उदय की विवक्षा न लेना परन्तु बंध केवली के आठों ही कर्मों का नहीं है। यद्यपि उनके साता वेदनीय का बंध सिद्धान्त में कहा है तथापि वह स्थिति अनुभाग रूप नहीं है इसलिये अबंध तुल्य ही है-इस प्रकार आठों ही कर्मों के बंध के अभाव की अपेक्षा उनके भावमोक्ष कहा जाता है तथा वे उपमा रहित गुणों में आरूढ़ हैं-सहित हैं, ऐसे गुण छदमस्थ में कहीं भी नहीं होते अतः उपमा रहित गुण जिनमें हैं वे अरहंत होते हैं। 崇先养养擺擺禁藥男崇崇崇勇兼勇崇勇攀事業蒸蒸勇攀事業 टि0-1.पदार्थ की सत्ता मात्र का अवलोकन होना दन है और विषता को लिए हुए विकल्प सहित जानना ज्ञान कहलाता है। टिO-2.इस पर 'श्रु0 टी0' में प्रान किया है कि 'जबकि अरहन्त भगवान के चार घातिया कर्म ही नष्ट हुए हैं तो फिर उन्हें 'नष्टाष्टकर्मबंध' क्यों कहा जाता है?' इसका उत्तर है-'आपने ठीक कहा है परन्तु जिस प्रकार सेनापति के नष्ट हो जाने पर 3 समूह के जीवित रहते हुए भी वह मत के समान जान पड़ता है क्योंकि विकृति के करने वाले भाव का अभाव हो गया है उसी प्रकार सब कर्मों में मुख्यभूत मोहनीय कर्म के नष्ट हो जाने पर यद्यपि भगवान के चार अघातिया कर्म अभी विद्यमान हैं, फिर भी विविध फलोदय का अभाव होने से वे भी नष्ट हो गये-ऐसा कहा जाता है।' 崇崇明業崇崇明藥業崇明崇崇明崇明崇崇明崇明
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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