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पाहड़M alirates
वामी विरचित
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Mahestra
आचाय कुन्दकुन्द
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अर्थ संयम से संयुक्त और ध्यान के योग्य ऐसा जो मोक्षमार्ग उसका 'लक्ष्य' अर्थात् लक्षने योग्य वेध्य-निशाना जो अपना निजस्वरूप वह ज्ञान से पाया जाता है इसलिए इस प्रकार लक्ष्य को जानने के लिए ज्ञान को जानना।
भावार्थ संयम अंगीकार करके ध्यान करे परन्तु आत्मा का स्वरूप न जाने तो मोक्षमार्ग की सिद्धि नहीं होती इसलिए ज्ञान का स्वरूप जानना, इसके जानने | से सर्व सिद्धि है।।२०।।
उत्थानिका
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आगे इसको द ष्टान्त से द ढ़ करते हैं :जह णवि लहदि हु लक्खं रहिओ' कंडस्स वेज्झयविहीणो। तह णवि लक्खदि लक्खं अण्णाणी मोक्खमग्गस्स।।२१।।
अभ्यास, बाण विहीन प्राणी, लक्ष्य को नहिं पाता ज्यों। अज्ञानी भी लक्षित करे नहीं, मोक्षमग का लक्ष्य त्यों ।।२१।।
अर्थ जैसे वेध्य को वेधनेवाला वेधक जो बाण उससे 'विहीन' अर्थात् रहित जो पुरुष है वह 'कांड' अर्थात् धनुष उसके अभ्यास से रहित हो तो 'लक्ष्य' अर्थात् निशाने को नहीं पाता वैसे ही ज्ञान से रहित जो अज्ञानी है वह दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप जो मोक्षमार्ग उसके 'लक्ष्य' अर्थात् लक्षने योग्य जो परमात्मा का स्वरूप है उसको नहीं पाता।
भावार्थ जैसे धनुषधारी धनुष के अभ्यास से और वेधने वाला वेधक जो बाण उससे रहित हो तो निशाने को नहीं पाता वैसे ही ज्ञान से रहित अज्ञानी मोक्षमार्ग का निशाना
崇先养养崇崇崇崇崇明崇崇勇禁藥勇禁藥事業蒸蒸男崇勇
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टि0-1.ढूंढारी टीका में देखें । 崇明崇明崇明崇崇明崇慧。崇明崇崇明崇明崇明崇明崇明