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आचार्य कुन्दकुन्द
दिढसंजम मुद्दा
* अष्ट पाहुड़
आगे 'जिनमुद्रा' का स्वरूप कहते हैं
उत्थानिका
इंदियमुद्दा कसायदिढमुद्दा |
मुद्दा इह णाणाए जिणमुद्दा एरिसा भणिया' ।। ११ । । इन्द्रिय-कषाय सुदिढ़ मुद्रा, संयम सुद ढ़ मुद्रा से हो।
है उक्त मुद्रा ज्ञान से, जिनमुद्रा तो ऐसी कही । । ११ । ।
अर्थ
द ढ़ अर्थात् वज्रवत् जो चलाने पर भी न चले ऐसा संयम जो इन्द्रिय-मन का
वश करना एवं षट् जीवनिकाय की रक्षा करना - ऐसे संयम रूप मुद्रा से तो पाँच
इन्द्रियों को विषयों में नहीं प्रवर्ताना, उनका संकोचना यह तो इन्द्रिय मुद्रा
ज्ञान का स्वरूप में लगाना - ऐसे ज्ञान से
स्वामी विरचित
जिनशासन में ऐसी 'जिनमुद्रा' होती है।
ऐसे संयम से ही कषायों की प्रवत्ति जिसमें नहीं है ऐसी कषाय द ढ़ मुद्रा है तथा
:
भावार्थ
टि(0-1. ढूंढारी टीका में देखें ।
ऐसे 'जिनमुद्रा' का स्वरूप कहा ।।१६।।
उत्थानिका
१. संयम से सहित हों, २. इन्द्रियाँ जिनकी वशीभूत हों, ३. कषायों की जिनके
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प्रवत्ति न हो और ४.ज्ञान को स्वरूप में लगाते हों ऐसे मुनि हैं वे ही 'जिनमुद्रा' हैं।
सारी बाह्य मुद्रा शुद्ध होती है। सो
है तथा
आगे 'ज्ञान' का निरूपण करते हैं :
संजसंजुत्तस्स य झाणजोयस्स मोक्खमग्गस्स ।
णाणेण लहदि लक्खं तम्हा णाणं च णायव्वं ।। २० ।।
संयम से युक्त, सुध्यान योग्य, विमुक्ति मग का लक्ष्य जो ।
वह ज्ञान से हो प्राप्त इससे, ज्ञान ही ज्ञातव्य
४-१६
【專業
।। २० ।।
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