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आचार्य कुन्दकुन्द
* अष्ट पाहुड़
उत्थानिका
(OR)
आगे फिर कहते हैं :
जं चरदि सुद्धचरणं जाणइ पिच्छेइ सुद्धसम्मत्तं ।
सा होइ वंदणीया णिग्गंथा संजदा पडिमा ।। ११।।
जाने रु देखे शुद्ध समकित युत, चरण शुध आचरे।
वह संयमी निर्ग्रन्थ प्रतिमा, होती वंदन योग्य है । । ११ । ।
अर्थ
जो १.शुद्ध चारित्र का आचरण करते हैं, २. सम्यग्ज्ञान से यथार्थ वस्तु को जानते
हैं तथा ३. सम्यग्दर्शन से अपने स्वरूप को देखते हैं इस प्रकार शुद्ध सम्यक्त्व जिनके पाया जाता है ऐसी जो निर्ग्रथ संयमस्वरूप प्रतिमा है वह वंदने योग्य है | भावार्थ
जानने वाला, देखने वाला, शुद्ध सम्यक्त्व एवं शुद्ध चारित्र स्वरूप निर्ग्रथ संयम
स्वामी विरचित
सहित ऐसा जो मुनि का स्वरूप है सो ही प्रतिमा है, वह वंदने योग्य है, अन्य
कल्पित वंदने योग्य नहीं है तथा वैसे ही रूप सद श जो धातु - पाषाण की प्रतिमा
हो वह व्यवहार से वंदने योग्य है । । ११ ।।
उत्थानिका
आगे फिर कहते हैं
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दंसण अनंतणाणं अनंतवीरिय अणंतसुक्खा य ।
सासयसुक्ख अदेहा मुक्का कम्मट्टबंधेय ।। १२ ।।
—
णिरुवममचलमखोहा णिम्मविया जंगमेण रूवेण ।
सिद्धट्ठाणम्मि ठिया वोसरपडिमा धुवा सिद्धा ।। १३ ।। जुगमं । ।
8-93
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