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________________ अष्ट पाहुड़ ate-site स्वामी विरचित . आचाय कुन्दकुन्द . . 9 Dooo HDod ADes/ Des Deol CAMERA •load 0 उत्थानिका 添添添明帶禁藥先崇崇崇勇兼勇禁樂樂業事業事業% आगे प्रथम ही जो 'आयतन' कहा उसका निरूपण करते हैं :मणवयणकायदव्वा आयत्ता' जस्स इंदिया विसया । आयदणं जिणमग्गे णिद्दिट्ट संजय रूवं।। ५।। आधीन जिसके मन, वचन, तन द्रव्य, इन्द्रियविषय अरु। जिनमग में निर्दिष्ट आयतन, उस संयमी का रूप है।।५।। अर्थ जिनमार्ग में जो संयम सहित मुनि का रूप है उसे आयतन कहा है। कैसा है मुनि रूप-जिनके द्रव्य रूप मन-वचन-काय तथा पाँच इन्द्रियों के स्पर्श, रस, गंध, वर्ण एवं शब्द आदि विषय 'आयत्तन' अर्थात् आधीन हैं, वशीभूत हैं। उनके संयमी मुनि आधीन नहीं हैं, वे मुनि के वशीभूत हैं। ऐसा संयमी है सो आयतन है।।५।। उत्थानिका 崇先养养擺擺禁藥男崇崇崇勇兼勇崇勇攀事業蒸蒸勇攀事業 __ आगे फिर कहते हैं :मय राय दोस मोहो कोहो लोहो य जस्स आयत्ता। पंचमहव्वयधारी आयदणं महरिसी भणियं ।। ६।। मद, रागद्वेष व मोह, क्रोध अरु लोभ सब आधीन हों। उस पंच महाव्रतधर महर्षि, को कहा है आयतन।।६।। | टिO- 1. श्रु0 टी0' में 'आयत्ता' के स्थान पर 'आसत्ता' (सं0-'आसक्ता' अर्थात् 'सम्बन्धमायाता') पाठ देकर पंक्ति का अर्थ किया है-'मन-वचन-काय रूप द्रव्य और पांच इन्द्रियों के विषय जिनके अपने आपके सम्बन्ध को प्राप्त हैं अर्थात् पर पदार्थ से हटकर आत्मा से सम्बन्ध रखते हैं।' 先崇崇崇崇崇崇明崇崇明崇崇崇明崇崇步
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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