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________________ अष्ट पाहुड़ ate-site स्वामी विरचित आचाय कुन्दकुन्द FDoole BOO Dooo •load अर्थ जिस मुनि के मद, राग, द्वेष, मोह, क्रोध, लोभ और 'चकार' से माया आदि-ये सब 'आयत्ता' अर्थात् निग्रह को प्राप्त हो गए तथा जो पांच महाव्रत अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं परिग्रह का त्याग इनका धारी हो-ऐसे महामुनि ऋषीश्वर को आयतन कहा है। भावार्थ पहली गाथा में तो बाह्य का रूप कहा था, यहाँ बाह्य-अभ्यंतर दोनों प्रकार से जो संयमी हो सो आयतन है-ऐसा जानना।।६।। उत्थानिका से) 听听听听听听听听听听听听听听听听 आगे फिर कहते हैं :सिद्धं जस्स सदत्थं विसुद्धज्झाणस्स णाणजुत्तस्स। सिद्धायदणं सुद्धं मुणिवरवसहस्स मुणिदत्यं ।। ७।। सुविशुद्ध ध्यानी ज्ञानयुत, जिसके सदर्थ सुसिद्ध है। मुनिवरव षभ विदितार्थ वह, सिद्धायतन सुप्रसिद्ध है।७।। अर्थ जिस मुनि के 'सदर्थ' अर्थात् समीचीन अर्थ जो शुद्ध आत्मा सो सिद्ध हो गया हो वह सिद्वायतन है। कैसे हैं मुनि-१.विशुद्ध है ध्यान जिनके अर्थात् धर्मध्यान को साधकर शुक्लध्यान को प्राप्त हुए हैं। और कैसे हैं-२.ज्ञान से सहित हैं अर्थात् केवलज्ञान को प्राप्त हुए हैं। और कैसे हैं-३.शुद्ध हैं अर्थात् घातिकर्मरूपी मल से रहित हैं इसलिए मुनियों में 'व षभ' अर्थात् प्रधान हैं। और कैसे हैं-४.जाने हैं समस्त पदार्थ जिन्होंने-ऐसे मुनिप्रधान को सिद्धायतन कहते हैं। भावार्थ इस प्रकार तीन गाथा में आयतन का स्वरूप कहा। उनमें पहली गाथा में तो 乐禁虽業樂業崇崇明業 藥藥業樂業先崇明 崇先养养崇勇兼崇崇崇明崇崇勇兼勇崇勇攀事業蒸蒸勇攀事業男
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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