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________________ अष्ट पाहुड़ta पाहड़M alirates वामी विरचित . आचाय कुन्दकुन्द . . 9 Dooo ADes/ dragie Ca ADeo उत्थानिका| 巩巩巩巩巩巩巩巩業巩業業巩巩巩巩巩業巩巩牆% प्रथम ही आचार्य ग्रन्थ करने की मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा करते हैं: बहुसत्थअत्थजाणे संजमसम्मत्तसुद्धतवयरणे। वंदित्ता आयरिए कसायमलवज्जिदे सुद्धे ।। १।। सयलजणबोहणत्थं जिणमग्गे जिणवरेहिं जह भणियं। वोच्छामि समासेण य छक्कायसुहंकरं सुणसु।। २।।जुगम।। बहु शास्त्र अर्थ के ज्ञाता द ग, संयम विमल तप आचरे। औ कषाय मल से रहित शुद्ध, आचार्यों की कर वंदना।।१।। जो सकल जन बोधार्थ जिन, मारग में जिनवर ने कहा। छह काय को सुखकर सुनो, भायूं उसे संक्षेप से ।।२।। अर्थ आचार्य कहते हैं कि 'मैं आचार्यों की वंदना करके, १.छहकाय के जीवों को सुख का करने वाला, २.जिनमार्ग में जिनवरदेव ने जैसा कहा वैसा तथा ३.समस्त लोगों के हित का जिसमें प्रयोजन है ऐसा ग्रंथ संक्षेप से कहूंगा उसको हे भव्य जीव ! तू सुन । जिन आचार्यों की वंदना की वे आचार्य कैसे हैं-१. बहुत शास्त्रों के अर्थ को जानने वाले हैं। और कैसे हैं-२. संयम और सम्यक्त्व से जिनका तपश्चरण शुद्ध है। और कैसे हैं-३. 'कषाय रूप मल से रहित हैं इसलिए शुद्ध हैं।' भावार्थ यहाँ आचार्यों की जो वंदना की, उसके विशेषणों से यह जाना जाता है कि गणधरादि से लेकर अपने गुरु पर्यंत सबकी वंदना है तथा ग्रन्थ करने की जो प्रतिज्ञा की, उसके विशेषणों से यह जाना जाता है कि जो 'बोधपाहुड' ग्रन्थ करेंगे उससे लोगों को धर्ममार्ग में सावधान करके, कुमार्ग छुड़ाकर अहिंसा धर्म का उपदेश करेंगे ।।१-२।। 崇先养养擺擺禁藥男崇崇崇勇兼勇崇勇攀事業蒸蒸勇攀事業 听業吼吼吼吼吼吼吼吼吼吼吼吼吼
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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