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पष्ठ
क्रमांक
विषय २५. दयाविशुद्ध धर्म, परिग्रह रहित प्रव्रज्या और मोह रहित देव
भव्यजीवों के उदय को करते हैं २६. तीर्थ-व्रत, सम्यक्त्व विशुद्ध शुद्धात्मा रूप तीर्थ में मुनि को
दीक्षा-शिक्षा रूप स्नान के द्वारा पवित्र होने की प्रेरणा ४-२४ २७. शांतभाव सहित उत्तम क्षमादि धर्म, सम्यक्त्व, संयम, तप और ज्ञान ही जिनमार्ग में तीर्थ हैं
४-२५ २४. अरिहंत नामादि निक्षेप व गुण-पर्याय आदि भावों से अरिहंत का ज्ञान होता है
४-२६ २१. नाम निक्षेप-गुणों के सद्भाव से नाम अर्हत का वर्णन ४-२८ ३०. दोषों के अभाव से नाम अर्हत का वर्णन
४-२६ ३१. स्थापना निक्षेप-गुणस्थानादि पाँच भेदों से अरिहंत की स्थापना के पाँच प्रकार
४-३० ३२. चौदह गुणस्थानों में अर्हन्त की स्थापना
४-३१ ३३. चौदह मार्गणाओं में अर्हन्त की स्थापना
४-३२ ३४. छह पर्याप्तियों में अर्हन्त की स्थापना
४-३३ ३५. दस प्राणों में अर्हन्त की स्थापना
४-३४ ३६. चौदह जीवस्थानों में अर्हन्त की स्थापना
४-३५ ३७-३9. द्रव्य निक्षेप-आत्मा से भिन्न औदारिक देह को प्रधान करके द्रव्य अर्हन्त का वर्णन
४-३६ ४०-४१. भावनिक्षेप-भाव को प्रधान करके अर्हन्त का वर्णन
४-३७-३८ २-४४. प्रव्रज्या-दीक्षा योग्य स्थानक तथा दीक्षित मुनियों के ध्यान व चिंतवन योग्य स्थान
४-४१ ४५-५9. प्रव्रज्या का अन्तरंग एवं बाह्य स्वरूप
४-४३-५६ ६०. बोधपाहुड़ के कथन का संकोचन
४-५७ ६१. बोधपाहुड़ का कथन बुद्धिकल्पित नहीं वरन् पूर्वाचार्यों के अनुसार है
४-६१ ६२. श्रुतकेवली भद्रबाहु की स्तुति रूप वचन
४-६२ 2. विषय वस्तु ४-६४ 5. गाथा चित्रावली ४-८२ 3. गाथा चयन ४-६६ 6. अंतिम सूक्ति चित्र 4. सूक्ति प्रकाश ४-६७
बोध पा० समाप्त ४-८३
४-४