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गाथा ३४,३५,३७
अचौर्य व्रत की पाँच भावनाएं
विमोचिता' वास
शून्यागार निवास
१.
२.
साधर्मी अविसंवाद
५.
एषणा
शुद्धि
परोपरोधा)
करण
ब्रह्मचर्य व्रत की पाँच भावनाएँ
१.
पूर्वरति के
स्त्रियों से स्मरण का
संसक्त वसति त्याग
का त्याग रागभावपूर्वक स्त्रियों के देखने से
विरक्ति पुष्टिकर
विकथाओं भोजन का त्याग
विरक्ति
४.
पाँच समितियाँ
१.
२.
ईर्या
भाषा
३.
५.
आदान निक्षेपण
प्रतिष्ठा एषणा
पन ये पाँच समितियाँ संयम की शुद्धि के लिए श्री जिनेन्द्र देव ने कही हैं।
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