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गाथा ३८,३६
जिनमार्ग में जिनेश्वर देव ने
CEO
भव्यों को संबोधने के लिए
जैसा ज्ञान
और ज्ञान का स्वरूप
कहा है
DEVOTION
उस ज्ञानस्वरूप आत्मा को
हे भव्य ! तू अच्छी तरह जान।
जो पुरुष जीव और अजीव का भेद जानता है
वह सम्यग्ज्ञानी होता है रागादिक दोषों से रहित ही जिनशासन में मोक्षमार्ग है।
३-६२