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________________ अष्ट पाहड़ate स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द real Dod HDool और ज्ञान का स्वरूप नहीं है। जो सर्वज्ञ वीतराग देव भाषित ज्ञान और ज्ञान का स्वरूप है वह निर्बाध सत्यार्थ है। ज्ञान है सो ही आत्मा है तथा आत्मा का जो स्वरूप है उसको जानकर उसमें स्थिरता भाव करे व परद्रव्यों से राग-द्वेष न करे सो ही निश्चय चारित्र है सो पूर्वोक्त महाव्रतादि की प्रव त्ति के द्वारा इस ज्ञानस्वरूप आत्मा में लीन होना-ऐसा उपदेश है।।३8 ।। INउत्थानिका 崇崇崇崇崇榮樂崇崇明崇崇勇兼崇崇勇兼業助業 आगे कहते हैं कि 'जो ऐसे ज्ञान से इस प्रकार जानता है वह सम्यग्ज्ञानी है : जीवाजीवविभत्ती जो जाणइ सो हवेइ सण्णाणी। रायादिदोसरहिओ जिणसासण मोक्खमग्गु त्ति।। ३9।। सुविभाग जाने जीव-अजीव का, होता वह सज्ज्ञानि अरु । रागादि दोष से रहित, जिनशासन में मुक्तिमग यही।।३9 ।। अर्थ जो पुरुष जीव और अजीव-इनका भेद जानता है वह सम्यग्ज्ञानी होता है तथा रागादि दोषों से रहित होता है-ऐसा जिनशासन में मोक्षमार्ग है। भावार्थ जो जीव-अजीव पदार्थ का स्वरूप भेद रूप जान आपा-परका भेद जानता है वह सम्यग्ज्ञानी होता है और परद्रव्यों से राग-द्वेष छोड़ने से ज्ञान में स्थिरता होने पर निश्चय सम्यक चारित्र होता है सो ही जिनमत में मोक्षमार्ग का स्वरूप कहा है। अन्यमतियों ने जो अनेक प्रकार कल्पना करके कहा है वह मोक्षमार्ग नहीं है।।39।। उत्थानिका 崇明崇明崇崇崇崇業業業助兼功兼業助業業事業事業事業 आगे ऐसे मोक्षमार्ग को जान जो श्रद्धा सहित उसमें प्रवर्तता है वह शीघ्र ही मोक्ष पाता है-ऐसा कहते हैं : 3-3६ 崇明崇明崇明崇明崇明禁藥騰騰騰崇明崇明崇明崇明
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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