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________________ 專業出業業業業業業業業業業業業業業 आचार्य कुन्दकुन्द * अष्टपाहुड़ स्वामी विरचित अर्थ १. प्रथम तो हिंसा से विरति सो अहिंसा है, २. दूसरा असत्यविरति है, ३. तीसरा अदत्तविरति है, ४. चौथा अब्रह्मविरति है और ५. पाँचवाँ परिग्रह से विरति है। भावार्थ इन पाँच पापों का सर्वथा त्याग जिनमें होता है वे पाँच महाव्रत हैं । । ३० ।। उत्थानिका आगे 'इनका 'महाव्रत' ऐसा नाम क्यों है' सो कहते हैं : साहंति जं महल्ला आयरियं जं महल्ल पुव्वेहिं । जं च महल्लाणि तदो महव्वया इत्तहेयाइं ।। ३१ ।। साधे महन्त पुरुष, हैं साधा पूर्व में उनने इन्हें । स्वयमेव ही हैं महान ये, अतएव महाव्रत नाम है ।। ३१ । । अर्थ १. ’महल्ला' अर्थात् महन्त पुरुष जिनको साधते हैं, आचरण करते हैं, पुनः २. पहिले भी जिनका महन्त पुरुषों ने आचरण किया है, पुनः ३. ये व्रत आप | ही महान हैं-बड़े हैं क्योंकि इनमें पाप का लेश नही-ऐसे ये पाँच महाव्रत भावार्थ जिनका बड़े पुरुष आचरण करें और जो स्वयं निर्दोष हों वे ही बड़े कहलाते हैं- इस प्रकार इन पाँच व्रतों की महाव्रत संज्ञा है । । ३१ ।। उत्थानिका आगे इन पाँच व्रतों की जो पच्चीस भावना हैं उनको कहते हैं। उनमें प्रथम ही 'अहिंसा व्रत की पाँच भावना' कहते हैं :– ३-३३ 卐卐卐卐業 麻糕糕糕業業業卐業渊渊 卐糕糕卐卐
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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