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आचार्य कुन्दकुन्द
* अष्टपाहुड़
स्वामी विरचित
वयगुत्ती मणगुत्ती इरियासमिदी सुदाणणिक्खेवो । अवलोयभोयणायाहिंसाए भावणा होंति ।। ३२ ।।
वचगुप्ति, मनगुप्ती, समिति ईर्या, आदान निक्षेप अरु । अवलोक के भोजन, अहिंसा भावना ये पाँच हैं । । ३२ ।।
अर्थ
१-२. वचनगुप्ति और मनोगुप्ति-ऐसे दो तो गुप्ति और ३. ईर्यासमिति पुनः
४. भली प्रकार कमंडलु आदि का ग्रहण- निक्षेप-यह आदाननिक्षेपण समिति पुनः
५. अच्छी तरह से देखकर विधिपूर्वक शुद्ध भोजन करना यह एषणा समिति- इस
प्रकार ये पाँच अहिंसा महाव्रत की भावना हैं।
भावार्थ
भावना नाम बारंबार उस ही का अभ्यास करना उसका है सो यहाँ प्रव त्ति-निव त्ति
में हिंसा लगती है उसका निरन्तर यत्न रखे तब अहिंसा व्रत पलता है इसलिये
यहाँ योगों की निवत्ति करनी तो भली प्रकार से गुप्ति रूप करनी और प्रवत्ति
करनी तो समिति रूप करनी, इस प्रकार निरन्तर अभ्यास से अहिंसा महाव्रत
द ढ़ रहता है-ऐसे आशय से इनको भावना कहा है ।।३२।।
उत्थानिका
आगे 'सत्य महाव्रत की भावना को कहते हैं :– कोहभयहासलोहामोहाविवरीयभावणा
चेव ।
विदियस्स भावणा एए पंचेव य तहा होंति ।। ३३ ।।
भय, क्रोध, लोभ व हास्य, मोह से, हों जो विपरित भावना ।
वे ही द्वितीय व्रत सत्य की होती है पाँचों भावना । । ३३ ।।
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अर्थ
१.क्रोध, २.भय, ३.हास्य, ४. लोभ और ५. मोह इनसे 'विपरीत' अर्थात् उल्टा
३-३४
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