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अष्ट पाहड़ate
स्वामी विरचित
आचार्य कुन्दकुन्द
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द्रव्य सामान्य से एक है तो भी विशेष से छह हैं-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल। इन द्रव्यों के गुण और पर्याय ये हैं(१) जीव-इसका दर्शनज्ञानमयी चेतना तो गुण है और मति आदि ज्ञान तथा क्रोध, मान, माया एवं लोभ आदि व नर, नारक आदि विभाव पर्याय हैं, स्वभावपर्याय अगुरुलघुगुण के द्वारा हानि–व द्धि का परिणमन है। (२) पुद्गल द्रव्य-इसके स्पर्श, रस, गंध, वर्ण रूप मूर्तिकपना तो गुण हैं और स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण का भेदों रूप परिणमन तथा अणु से स्कन्ध रूप होना तथा शब्द, बन्ध आदि रूप होना इत्यादि पर्याय हैं। (३) धर्म, अधर्म द्रव्य-इनके गतिहेतुत्व और स्थितिहेतुत्वपना तो गुण हैं और इन गुणों के जीव-पुद्गल के गति-स्थिति के भेदों से भेद होते हैं वे पर्याय हैं तथा अगुरुलघुगुण के द्वारा हानि-व द्धि का परिणमन होता है सो स्वभाव पर्याय है। (४) आकाश-इसका अवगाहना गुण है और जीव-पुद्गल आदि के निमित्त से प्रदेश भेद की कल्पना की जांय वे पर्याय हैं तथा हानि-व द्धि का परिणमन सो स्वभाव पर्याय है। (५) कालद्रव्य-इसका वर्तना तो गुण है और जीव-पुद्गल के निमित्त से समय आदि की कल्पना सो पर्याय है, इसको व्यवहार काल भी कहते हैं तथा हानि-व द्धि का परिणमन सो स्वभाव पर्याय है इत्यादि।
इनका स्वरूप जिन आगम से जानकर देखना, जानना और श्रद्धान करना, इससे आचरण शुद्ध होता है। बिना ज्ञान और श्रद्धान के आचरण शुद्ध नहीं होता है-ऐसा जानना।।१४।।
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उत्थानिका
आगे कहते हैं कि 'जो ये सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र तीन भाव हैं वे मोह रहित जीव के होते हैं, इनका आचरण करता हुआ शीघ्र मोक्ष पाता है' :
एए तिण्णि वि भावा हवंति जीवस्स मोहरहियस्स। णियगुण आराहतो अचिरेण वि कम्म परिहरइ।। १9।।
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