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________________ अष्ट पाहड़ate स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द . Dool CO अर्थ मूढ़ जीव हैं वे अज्ञान और 'मोह' अर्थात् मिथ्यात्व के दोषों से मलिन जो 'मिथ्यादर्शन' अर्थात् कुमत का मार्ग उसमें मिथ्यात्व और 'अबुद्धि' अर्थात् अज्ञान के उदय से प्रवर्तते हैं। भावार्थ ये मूढ़ जीव मिथ्यात्व और अज्ञान के उदय से मिथ्यामार्ग में प्रवर्तते हैं इसलिए मिथ्यात्व और अज्ञान का नाश करना यह उपदेश है।।१७।। उत्थानिका 听听听听听听听听听听听听听听听听听听 आगे कहते हैं कि 'सम्यग्दर्शन, ज्ञान और श्रद्धान से चारित्र के दोष दूर होते हैं : सम्मइंसण पस्सदि जाणदि णाणेण दव्वपज्जाया। सम्मेण य सद्दहदि परिहरदि चरित्तजे दोसे ।। १8।। देखे दरश से, ज्ञान से जाने दरव-पर्यायों को। सम्यक्त्व से श्रद्धा करे, परिहरे चरणज दोषों को ।।१8 ।। अर्थ यह आत्मा १. सम्यग्दर्शन से तो सत्तामात्र वस्तु को देखता है, २. सम्यग्ज्ञान से द्रव्य और पर्यायों को जानता है और ३. सम्यक्त्व से द्रव्यपर्याय स्वरूप सत्तामयी वस्तु का श्रद्धान करता है तथा ऐसा देखना, जानना व श्रद्धान करना हो तब 'चारित्र' अर्थात् आचरण में उपजे जो दोष उनको छोड़ता है। भावार्थ __ वस्तु का स्वरूप द्रव्यपर्यायात्मक सत्ता स्वरूप है सो जैसा है वैसा देखे, जाने और श्रद्धान करे तब आचरण शुद्व करे सो सर्वज्ञ के आगम से वस्तु का निश्चय करके आचरण करना। वहाँ वस्तु है सो द्रव्यपर्याय स्वरूप है । इनमें द्रव्य का सत्ता लक्षण है तथा गुणपर्यायवान को द्रव्य कहते हैं। पर्याय है सो दो प्रकार की है-सहवर्ती और क्रमवर्ती। इनमें सहवर्ती को गुण कहते हैं और क्रमवर्ती को पर्याय कहते हैं। 崇崇明崇明崇崇崇崇崇明業業%崇勇崇崇勇崇崇崇勇崇勇崇明 आला.३-२२ मा 樂崇明藥崇明藥業業助
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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