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________________ अष्ट पाहड़ate स्वामी विरचित आचार्य कुन्दकुन्द DoAGE अर्थ जो ज्ञानी होते हुए अमूढ़द ष्टि होकर सम्यक्त्वाचरण चारित्र से शुद्ध होते हैं वे यदि संयमाचरण चारित्र से सम्यक प्रकार शुद्ध हों तो शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त होते हैं। भावार्थ यदि पदार्थों के यथार्थ ज्ञान से मूढ़द ष्टि रहित विशुद्ध सम्यग्द ष्टि हो करके सम्यक चारित्र स्वरूप संयम का आचरण करे तो शीघ्र ही मोक्ष को पावे। संयम का अंगीकार होने पर स्वरूप के साधन रूप एकाग्र धर्मध्यान के बल से सातिशय अप्रमत्त गुणस्थान रूप होकर, श्रेणी चढ़कर अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान उत्पन्न करके, घातिकर्म का नाश करके मोक्ष पाता है सो यह सम्यक्त्वाचरण चारित्र का ही माहात्म्य है। 19 || -उत्थानिका 添添添添添添添馬樂樂業兼藥藥藥禁藥男男戀勇 आगे कहते हैं कि 'जो सम्यक्त्व के आचरण से भ्रष्ट हैं वे संयम का आचरण करते हैं तो भी मोक्ष नहीं पाते हैं :सम्मत्तचरणभट्ठा संजमचरणं चरंति जे वि णरा। अण्णाणणाणमूढ़ा तह वि ण पावंति णिव्वाणं।। १०।। सम्यक्त्वचरण से भ्रष्ट नर, संयमचरण यदि आचरें। तो भी न पाते मुक्ति को, अज्ञानज्ञानविमूढ़ वे||१०|| अर्थ जो पुरुष सम्यक्त्वाचरण चारित्र से भ्रष्ट हैं और संयम का आचरण करते हैं तो भी वे अज्ञान से मूढ़द ष्टि होते हुए निर्वाण को नहीं पाते हैं। भावार्थ सम्यक्त्वाचरण चारित्र के बिना संयमाचरण चारित्र निर्वाण का कारण नहीं है क्योंकि सम्यग्ज्ञान के बिना तो चारित्र मिथ्या कहलाता है और सम्यक्त्वाचरण के बिना ज्ञान मिथ्या कहलाता है-इस प्रकार सम्यक्त्व के बिना चारित्र के मिथ्यापना आता है।।१०।। 崇明崇岳崇明崇明崇明禁藥騰騰禁禁禁禁崇明 崇明崇明崇崇崇崇業業業助兼功兼業助業業事業事業事業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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