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अष्ट पाहड़ate
स्वामी
स्वामी विरचित
आचार्य कुन्दकुन्द
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उत्थानिका
आगे कहते हैं कि 'इस प्रकार पहिला सम्यक्त्वाचरण चारित्र होता है' :
तं चेव गुणविसुद्धं जिणसम्मत्तं सुमुक्खठाणाए। जं चरइ णाणजुत्तं पढमं सम्मत्तचरणचारित्तं ।। 8।। गुणशुद्ध जिनसम्यक्त्व को, हो ज्ञानयुत जो आचरे। सम्यक्चरण चारित प्रथम, हो मोक्षथान के हेतु वह ।।8।।
अर्थ
'तत्' अर्थात् सो 'जिनसम्यक्त्व' अर्थात् अरिहंत भगवंत जिनदेव की श्रद्धा का निःशंकित आदि गुणों से विशुद्ध होकर यथार्थ ज्ञानपूर्वक आचरण करना प्रथम सम्यक्त्वाचरण चारित्र है, वह मोक्षस्थान के लिए होता है।
भावार्थ सर्वज्ञ के द्वारा भाषित तत्त्वार्थ की श्रद्धा का निःशंकित आदि गुणों से सहित और पच्चीस मल दोषों से रहित ज्ञानवान आचरण करता है उसे सम्यक्त्वाचरण चारित्र कहते हैं सो यह मोक्ष की प्राप्ति के लिये होता है। क्योंकि मोक्षमार्ग में पहिले सम्यग्दर्शन कहा है इसलिए मोक्षमार्ग में प्रधान यह ही है।।8।।
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उत्थानिका
आगे कहते हैं कि 'ऐसे सम्यक्त्वाचरण चारित्र को अंगीकार करके यदि संयमाचरण चारित्र को अंगीकार करे तो शीघ्र ही निर्वाण को पावे' :
सम्मत्तचरणसुद्धा संजमचरणस्स जइ य सुपसिद्धा। णाणी अमूढदिट्ठी अचिरे पावंति णिव्वाणं।। 9।।
सम्यक्त्वचरण से शुद्ध यदि, संयमचरण से शुद्ध हों।
अविमूढ़द ष्टि ज्ञानी वे, पाते अचिर निर्वाण को।।9 ।। * **55 35555 9851153535 5 985