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________________ 【卐卐業卐業業業業業業 * अष्टपाहुड़ आचार्य कुन्दकुन्द उत्थानिका आगे वे दो प्रकार कौन से हैं सो कहते हैं :जिणणादिट्टिसुद्धं पढमं सम्मत्तचरणचारितं । विदियं संजमचरणं जिणणाण सदेसियं तं पि । । ५ । । सम्यक् चरण है प्रथम जो, जिन ज्ञान दर्शन शुद्ध है । संयमचरण है दूसरा, जिनज्ञानदेशित शुद्ध वह । । ५ । । अर्थ (१) प्रथम तो सम्यक्त्व का आचरण स्वरूप चारित्र है सो कैसा है - जिनदेव का ज्ञान और दर्शन - श्रद्धान उससे किया हुआ शुद्ध है तथा (२) दूसरा संयम का आचरण स्वरूप चारित्र है, वह भी जिनदेव के ज्ञान से दिखाया हुआ शुद्ध है । भावार्थ स्वामी विरचित चारित्र दो प्रकार का कहा - ( १ ) सम्यक्त्वाचरण चारित्र - प्रथम तो सम्यक्त्व का आचरण कहा सो सर्वज्ञ के आगम में जो तत्त्वार्थ का स्वरूप कहा उसे यथार्थ जानकर उसका श्रद्धान करना और उसके जो शंकादि अतिचार मल-दोष कहे उनका परिहार करके शुद्ध करना और उसके निःशंकितादि गुणों का प्रकट होना सो सम्यक्त्वाचरण चारित्र है । (२) संयमाचरण चारित्र - महाव्रत आदि अंगीकार करके सर्वज्ञ के आगम में जैसा कहा वैसा संयम का आचरण करना और उसके अतिचार आदि दोषों को दूर करना सो संयमाचरण चारित्र है - इस प्रकार संक्षेप से स्वरूप कहा ।।५।। 卐卐卐卐業 उत्थानिका आगे सम्यक्त्वाचरण चारित्र के मल-दोषों का परिहार करके आचरण करना ऐसा कहते हैं ३-६ -- *縢糕糕糕糕糕糕糕卐糕糕卐糕糕糕糕糕卐縢卐」 卐糕糕卐卐
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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