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अनुक्रम
1. गाथा विवरण
क्रमांक
विषय
१. मंगलाचरण में सर्वज्ञ वीतराग अरिहंत को वंदन
२. रत्नत्रयशुद्धि एवं मोक्ष के आराधन का हेतु चारित्रपाहुड़ रचने की प्रतिज्ञा
३-६
ज्ञान, दर्शन व उनके समायोग से होने वाले चारित्र का स्वरूप ३-७ ४. अक्षय अनंत दर्शन, ज्ञान व चारित्र के शोधन के लिए दो प्रकार के चारित्र का कथन
५. सम्यक्त्वाचरण व संयमाचरण चारित्र का स्वरूप
१६. सम्यक्त्वाचरण के मलदोषों का तीनों योगों से परिहार करने की प्रेरणा
७. सम्यक्त्वाचरण के आठ अंगों का वर्णन
मोक्षस्थान के लिए पहले गुणविशुद्ध सम्यक्त्वाचरण चारित्र होता है
9. सम्यक्त्वाचरणपूर्वक संयमाचरण चारित्र से शीघ्र ही निर्वाण होता है
१०. सम्यक्त्वाचरण से भ्रष्ट संयम का आचरण करता हुआ भी निर्वाण नहीं पाता
११-१२. सम्यक्त्वाचरण चारित्र के लक्षण
१३. कुदर्शन के उत्साह, सेवा, प्रशंसा व श्रद्धा से जिनसम्यक्त्व से
पष्ठ
३-६
१४. सुदर्शन में उत्साह आदि से सम्यक्त्व च्युति का न होना १५. अज्ञान, मिथ्यात्व व कुचारित्र त्याग का उपदेश
३-३
३-८
३-६
३-६
३-१२
३-१४
३-१४
3-99
३-१८
३-१६
१६. विशुद्ध ध्यान का परिकर
३-२०
१७. अज्ञान और मिथ्यात्व के दोष से जीव का मिथ्यामार्ग में प्रवर्तन ३-२१ १४. दर्शन, ज्ञान व सम्यक्त्व से जीव चारित्र के दोष छोड़ता है ३-२२ १७. मोह रहित जीव के निजगुण की आराधना से कर्मों का शीघ्र नाश ३-२३ २०. संक्षेप से सम्यक्त्वाचरण चारित्र का माहात्म्य-गुणश्रेणीनिर्जरा ३-२४
३-१५
३-१६