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प्रारम्भिक सूक्ति
आचार्य कहते हैं-'हे भव्य जीवों ! __ इस • चारित्रपाहुड को तुम अपना शुद्ध भाव करके भाओ अर्थात अपने भावों में बारम्बार इसका अभ्यास करो,
जिससे शीघ्र ही सम्यक्त्वाचरण एवं सागार संयमाचरण चारित्र द्वार से गुजर व निरागार संयमाचरण द्वार का उल्लंघन कर अपुनर्भव जो मोक्ष सो तुम्हारे होगा और फिर संसार में जन्म नहीं पाओगे।'
पाचरण द्वार
नरागार सयमा
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र सयमाचरण
रणद्वार
आचरण
.:सम्यक्त्व
द्वार
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३-२