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________________ विषयवस्तु ___ यह पाहुड़ सत्ताईस गाथाओं में निबद्ध है। जिनसूत्र की महिमा करते हुए कुन्दकुन्द स्वामी कहते हैं कि अरहंत सर्वज्ञ से भाषित और गणधर देवों द्वारा गूंथे हुए सूत्र से मुनि मोक्ष को साधते हैं। वह सूत्र आचार्यों की परम्परा रूप मार्ग से चला आया है एवं व्यवहार और परमार्थ रूप से दो प्रकार का है। उसको शब्द और अर्थ से जानकर मोक्षमार्ग में प्रवर्तने वाला जो भव्य जीव होता है, वह सूत्र से हेय व अहेय समस्त पदार्थों को जानता है और स्वसंवेदन ज्ञान से अपनी आत्मा का प्रत्यक्ष अनुभव करके संसार में रुलता नहीं वरन् संसार का नाश कर देता है। सूत्र के अर्थ पद से भ्रष्ट मिथ्याद ष्टि होता है, वह हरिहरादि तुल्य हो तो भी मोक्ष नहीं पाता। जिनसूत्र में नग्न दिगम्बर स्वरूप ही एक अद्वितीय मोक्षमार्ग कहा गया है, शेष सर्व अमार्ग हैं। नग्न मनि के बाल के अग्रभाग की अणी मात्र भी परिग्रह का ग्रहण नहीं होता, वह अपने हाथों में तिल का तुष मात्र भी कुछ ग्रहण करे तो उससे निगोद चला जाता है। जिनशासन में एक नग्नपना ही मोक्षमार्ग है, वस्त्रधारी तो यदि तीर्थंकर भी हो तो भी वह मोक्ष नहीं पाता। इस एक मुनिलिंग के अतिरिक्त जिनसूत्र में दूसरा लिंग उत्क ष्ट श्रावक-क्षुल्लक का और तीसरा लिंग आर्यिका का कहा गया है। इन तीन के सिवाय चौथा लिंग होता ही नहीं। फिर अन्त में वीतरागी मुनियों की महिमा करते हुए कि . जिनके सारी इच्छा निव त हो गई उनके सारे दुःख ही नष्ट हो गए, आचार्य देव ने पाहुड़ की समाप्ति की है। न की समाप्ति का हाप ने पाइ5 २-४०
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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