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अष्ट पाहड़
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स्वामी विरचित
आचार्य कुन्दकुन्द
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करते हैं। उसके द्वारा पुण्य एवं पाप की विधि (प्रथमानुयोग), लोक की रचना (करणानुयोग), श्रावक एवं मुनि का आचार (चरणानुयोग) जानकर एवं स्व-पर भेद का निर्णय (द्रव्यानुयोग) करके मुनि सारे कर्मों का नाश करके मोक्ष पा लेते हैं।।१।।
दोहा वर्द्धमान जिन के वचन, वरतै पंचम काल। भव्य पाय शिव मग लहै, नमूं तास गुणमाल।।२।।
अर्थ वर्तमान पचंम काल में वर्द्धमान जिनेन्द्र के वचनों का प्रवर्तन है, भव्य जीव उनको पाकर मोक्षमार्ग को प्राप्त कर लेते हैं, मैं उन वीर जिन के वचनों के गुणों की माला को नमन करता हूँ||२|| इस प्रकार सूत्रपाहुड़ को पूर्ण किया।
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崇养崇崇崇崇崇崇崇崇勇攀藤勇攀事業樂業禁帶男
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