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अष्ट पाहुड़storate
स्वामी विरचित
आचार्य कुन्दकुन्द
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णिच्चेलपाणिपत्तं उवइ8 परमजिणवरिंदेहिं। एक्को वि मोक्खमग्गो सेसा य अमग्गया सव्वे ।। १०।। निश्चेल पाणिपात्र जिनवर इन्द्र से उपदिष्ट जो। वह एक ही है मुक्ति मारग, शेष सर्व अमार्ग हैं।।१०।।
अर्थ जो "निश्चेल' अर्थात् वस्त्र रहित दिगम्बर मुद्रास्वरूप और 'पाणिपात्र' अर्थात् हाथ ही हैं पात्र जिसमें इस प्रकार खड़ा रहकर आहार करना ऐसे एक अद्वितीय मोक्षमार्ग का तीर्थंकर परम देवों ने उपदेश दिया है, इसके सिवाय जो अन्य रीति हैं वे सब अमार्ग हैं।
भावार्थ ___ जो म गचर्म, व क्ष के वल्कल, कपास पट्ट, दुकूल, रोमवस्त्र, टाट के और त ण के
वस्त्र इत्यादि रखकर अपने को मोक्षमार्गी मानते हैं तथा इस काल में जिनसूत्र से || च्युत हुए हैं उन्होंने अपनी इच्छा से अनेक वेष चलाए हैं-कई श्वेत वस्त्र रखते हैं,
कई रक्त वस्त्र, कई पीले वस्त्र, कई टाट के वस्त्र, कई घास के वस्त्र और कई रोम के वस्त्र इत्यादि रखते हैं, उनके मोक्षमार्ग नहीं है क्योंकि जिनसूत्र में तो एक नग्न दिगम्बर स्वरुप पाणिपात्र भोजन करना-ऐसा मोक्षमार्ग कहा है, अन्य सब वेष मोक्षमार्ग नहीं हैं, जो मानते हैं वे मिथ्याद ष्टि हैं।।१०।।
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उत्थानिका आगे दिगम्बर मोक्षमार्ग की प्रव त्ति कहते हैं :जो संजमेसु सहिओ आरंभपरिग्गहेसु विरओ वि। सो होइ वंदणीओ ससुरासुरमाणुसे लोए।। ११।।
जो जीव सयंम सहित है, आरम्भ-परिग्रह विरत है। इस सुर, असुर व मानवों युत, लोक में वह वंद्य है।।११।।
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