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योगसार प्रवचन (भाग - २)
तप का मान नहीं करना चाहिए। वे तो क्षणभंगुर चीजें हैं, उनका मान क्या करना ? जैसे, फल के भार से वृक्ष नीचे-नीचे झुकते जाते हैं... जैसे फल के भार से वृक्ष झुकते हैं; वैसे ही ज्ञानी को सम्पत्ति, विद्या, तप और बल प्राप्त होने पर विशेष कोमल और विनयवान होना चाहिए। आम बहुत पकते हों तो आम झुकता है। आम ! बहुत आम होते हैं न? पचास मन। एक-एक आम पर सौ-सौ मन, सौ-सौ मन, हाँ ! बड़ा आम्र होवे तो दो-दो सौ मन होते हैं। एक साथ दो सौ मन आम, आम्र वृक्ष नम जाता है -झुक जाता है । दस-दस के गुच्छे होते हैं ।
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मुमुक्षु : डालियाँ भार नहीं झेल सकती इतना ?
उत्तर : हाँ, इतने आम होते हैं, होते हैं, यहाँ होते हैं। सोनगढ़ में कितने होते हैं ! एक कहता था पचास मण पकेंगे, एक आम्र वृक्ष पर पचास मण ! यहाँ सोनगढ़ साधारण में... जिसमें पानी बहुत हो, बड़ा आम्र वृक्ष हो तो दो-दो सौ मण (होते हैं) उसमें बीस-बीस रुपये के मण होते हैं, ऐसे दो सौ मण । चार हजार रुपये (होते हैं)। उसमें धूल भी कुछ नहीं है । यहाँ तो कहते हैं, तुझमें तप और विनय आदि गुण होवे तो तुझे कोमलता रखनी चाहिए। इसके लिये यह दृष्टान्त है। विशेष कोमल (होता है ।)
दूसरे को ठगने का भाव मन में से निकालकर... माया की बात करते हैं) । मायाचार का आचरण नहीं करना । क्रोध, मान, माया, लोभ का त्याग कहते हैं न ? सीधा, सत्य व्यवहार रखना चाहिए। लोभ मन को मलिन करता है, सन्तोष से लोभ को जीतना चाहिए। लो !
आहार, भय, मैथुन, और परिग्रह यह चार संज्ञा ... लो, इन्हें जीतना चाहिए। चार संज्ञा को छोड़ना चाहिए। आत्मा को उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच इन चार गुणों सहित और ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य इन चार अनन्त चतुष्टय सहित ध्याना चाहिए। चार गुण यह और अनन्त चतुष्टय को ध्याना चाहिए। पवित्र होने का उपाय पवित्र का ध्यान करना है। लो ! तुझे निर्दोष होना हो तो निर्दोष भगवान आत्मा का ध्यान करना चाहिए। तुझे पवित्र होना हो तो पवित्र तो भगवान आत्मा पूर्णानन्द से पवित्र है, उसका ध्यान करना चाहिए। समझ में आया ?