________________ (vii) इस ग्रन्थ में आत्मा की तीन अवस्थाओं का वर्णन, श्री पूज्यपादस्वामी के समाधितन्त्र का एवं अन्य आध्यात्मिक विषयों का समावेश भगवत् कुन्दकुन्दाचार्य का योगीन्द्रदेव पर प्रभाव परिलक्षित करता है। जिन्होंने इस कलिकाल में लुप्त प्राय: आध्यात्मिक विद्या को अपने सातिशय दिव्यज्ञान एवं अध्यात्म रस झरती मंगलवाणी से पुनर्जीवित किया है - ऐसे निष्कारण करुणामूर्ति स्वात्मानुभवी सन्त पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी ने सन् 1966 में इस ग्रन्थ पर अत्यन्त भाववाही 45 प्रवचन किये हैं, जिनका संकलनरूप प्रकाशन 'हूँ परमात्मा' तथा 'आत्म सम्बोधन' नाम से प्रकाशित हुआ है। वर्तमान समय में परम उपकारी पूज्य गुरुदेव श्री के 9200 प्रवचन श्री कुन्दकुन्द कहान पारमार्थिक ट्रस्ट, मुम्बई के सत्प्रयत्नों से सी.डी./डी.वी.डी. में उपलब्ध हैं और देश-विदेश के अनेक मुमुक्षु मण्डलों में सामूहिक तथा व्यक्तिगतरूप से भी अनेक साधर्मी इन प्रवचनों का रसपान करते हैं। विगत कुछ दिनों से इन प्रवचनों के शब्दशः प्रकाशन की उपलब्धता ने इस कार्य को गति प्रदान की है और सभी लोग सरलता से पूज्यश्री की वाणी का अर्थ समझ रहे हैं। अतः योगसार प्रवचन सुनते समय सबके हाथ में यह प्रवचन ग्रन्थ रहे और सभी जीव गुरुवाणी का भरपूर लाभ लें - इस भावना से प्रस्तुत प्रकाशन किया जा रहा है। इस प्रकाशन में ग्रन्थ के मल अंश को बोल्ड टाइप में दिया गया है; आवश्यकतानुसार पैराग्राफ का प्रयोग किया गया है। यदि कहीं वाक्य अधूरा रह गया हो तो उसे कोष्टक भरकर अथवा डॉट (..........) का निशान बनाकर प्रस्तुत किया है। यदि आप इस ग्रन्थ को सामने रखकर सी.डी. प्रवचन सुनेंगे तो आपको निश्चित ही कई गुना लाभ होगा। प्रस्तुत प्रवचन ग्रन्थ के अनुवाद का उत्तरादायित्व प्रदान करने हेतु प्रकाशक ट्रस्ट के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। देवेन्द्रकुमार जैन बिजौलियाँ