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________________ योगसार प्रवचन (भाग-२) ४०९ है। यह वेदन जो आत्मा का अनुभव, वही मोक्ष का मार्ग है। ओ...हो... हो...! व्यवहारवालों को बहुत कठिन पड़ता है। व्यवहार है, भाई! ऐसा कहा न? है, परन्तु उसका लक्ष्य छोड़कर, उसका आश्रय छोड़कर, यहाँ भगवान पूर्णानन्द प्रभु का आश्रय कर, तभी अनुभव की शुरुआत होती है, तभी मोक्षमार्ग की शुरुआत होती है। समझ में आया? आत्मा का दर्शन अथवा आत्मानुभव भी एक सीधी सड़क है, जो मोक्ष के सिद्धमहल तक गयी है। भई ! यह सड़क कहाँ जायेगी? यह सड़क है न कहाँ जायेगी? जाओ, तलहटी तक। पालीताणा की तलहटी तक जायेगी। यह सड़क जाती है न ! यह सीमेण्ट कंकरीट की कहाँ जायेगी? जाओ सीधी तलहटी तक। जहाँ शत्रुजय है, उसकी तलहटी तक जाती है। ऐसे आत्मा का दर्शन अथवा आत्मानुभव ही एक सीधी सड़क है, जो मोक्ष के सिद्धमहल तक गयी है। मोक्षरूपी प्रासाद – महल तक यह सड़क गयी है। समझ में आया? भगवान वहाँ महाविदेह में विराजमान हैं। ऐसे विराजते हैं ऐसा कहा न? ऐसे विराजते हैं। इस प्रकार सिद्धपने की पर्याय की सीधी सड़क, वह आत्मानुभव का जो अन्तर अनुभव, श्रद्धा-ज्ञान और शान्ति से करना, वह सीधी सड़क मोक्ष के महल तक जाती है। पूर्ण कार्य तक चली जाती है। पूर्ण कार्य तक वह कारण चला जाता है। समझ में आया? समझ में आता है या नहीं इसमें ? नटूभाई ! बहुत सूक्ष्म परन्तु इसमें। मुमुक्षु - सड़क की बात समझ में आती है ? उत्तर – यह सड़क की बात है ? यह तो दृष्टान्त दिया, यह तो दृष्टान्त । सिद्धान्त सिद्ध करने के लिए दृष्टान्त है, या दृष्टान्त सिद्ध करने के लिए दृष्टान्त है ? भगवान आत्मा शुद्धस्वभाव परमानन्द की मूर्ति का अनुसरण करके होना – अनुभव – उसे अनुसरण करके होना; राग और निमित्त का अनुसरण छोड़कर पूर्णानन्द स्वभाव का अनुसरण करके होना – ऐसा जो पर्याय में आनन्द और शान्ति का अनुभव, उसमें सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र तीनों ही आ गये। यह सीधी सड़क सिद्ध पद की पर्याय के महल तक पहुँच जाती है। दूसरी कोई गली नहीं है। ऐसा लिखा है। ऐ... ई...! कोई कहे, यह कहाँ जाये? यह सीधी गली है, दूसरा कोई बीच में (आता है)? तो कहते हैं
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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