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योगसार प्रवचन (भाग-२)
३३७ जैसे रंग की उपाधि से स्फटिक पाषाण तन्मय हो जाता है। लो! यह तो दृष्टान्त दोनों के लिए, हाँ! स्फटिक पत्थर है और काला, लाल फूल हो तो उसकी दशा में भी वैसी झांईं होती है। निकल जाए तो सफेद झांईं होती है। तन्मय (हो जाता है) सफेद के साथ भी तन्मय है और लाल के साथ भी (तन्मय है)। पर्यायरूप से तन्मय है, लाल आदि से और स्वभावरूप हो तो स्वभाव श्वेत से तन्मय होता है। इसी प्रकार भगवान आत्मा.... है न प्रवचनसार में? शुभ-अशुभ और शुद्ध जिस भाव से परिणमे, उसमें तन्मय हो जाता है। प्रवचनसार । शुभ परिणमित, अशुभ परिणमित, शुद्ध परिणमित... भगवान आत्मा परिणमित होता है। पर्याय में परिणत होता है, शुभरूप भी परिणत होता है।
मुमुक्षु - स्फटिक लाल हो जाती है (या) नहीं होती?
उत्तर – नहीं, स्फटिक नहीं, उस प्रकार की पर्यायरूप हो जाती है, पर्यायरूप होती है। लाल-पीले की पर्यायरूप होती है, नहीं ऐसा नहीं। लकड़ी नहीं होती, उसे यदि ऐसा रखोगे तो नहीं होगी, क्योंकि उसकी पर्याय होने की योग्यता नहीं है और स्फटिक में वह अपनी योग्यता से होता है। उसमें योग्यता – उसकी स्वयं की पर्याय की योग्यता है। स्फटिक की वर्तमान पर्याय की स्वयं की योग्यता है। लकड़ी की योग्यता वर्तमान भी नहीं है और त्रिकाल भी नहीं है। यहाँ रखो तो नहीं होगी।
मुमुक्षु - स्फटिक में तो प्रतिभासता है।
उत्तर – है, परिणमन है। यहाँ पर तो पर्याय का परिणमन लेना है। फिर स्वभाव की अपेक्षा से, स्वभाव की दृष्टि से... ।
मुमुक्षु - होवे वह प्रतिभासे।
उत्तर – प्रतिभासे। उसके अस्तित्व में है। स्फटिक की पर्याय के अस्तित्व में वह लाल-पीली (अवस्था) है। किसी के अस्तित्व के कारण किसी के अस्तित्व में नहीं। समझ में आया? यह वस्तु है, इससे यह दृष्टान्त दिया है। रंग-रूप परिणमे, वैसी उसकी पर्याय का धर्म है, लकड़ी का नहीं परन्तु उसका – स्फटिक का धर्म है।
जैसे लकड़ी है, देखो! यह छोटी हो, दियासलाई, बीड़ी पीते हो, वह लकड़ी यहाँ जलेगी परन्तु यहाँ गर्म नहीं होगा और लोहे का सरिया इतना होगा तो अग्नि में रखा होगा