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योगसार प्रवचन (भाग - २)
डूबकी मारना छोड़कर यह तूने कहाँ डूबकी मारी ? कहते हैं, प्रभु ! एक बार तो देख ! इस विकल्प को छोड़। तब तुझे कुछ आनन्द का अनुभव आयेगा । समझ में आया ? अतीन्द्रिय आनन्द का अनुभव, उसे सम्यग्दर्शन, ज्ञान और सामायिक कहते हैं। कामदार ! किसी दिन यह सब सुना नहीं । णमो अरिहन्ताणं... णमो अरिहन्ताणं ( किया है ) ।
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सर्वज्ञ परमेश्वर वीतराग त्रिलोकनाथ समाधि के पिण्ड हो गये प्रभु की वाणी में आया था। सामने बड़े इन्द्र थे । अहो जीवों ! यह परसन्मुखता के विकल्प... यह मुनि कहते हैं, वह भगवान की वाणी में आया है वह मुनिराज कहते हैं। कोई घर का कुछ नहीं कहते हैं। समझ में आया ? परमात्मा आनन्द, पूर्णानन्द, समाधि के पिण्ड हो गये, भगवान हैं। जिन्हें विकल्प नहीं होता, इच्छा के बिना वाणी का प्रपात निकलता है । ओम... ओम... ओम... निकलता है, ओम... ध्वनि सम्पूर्ण शरीर से (निकलती है) क्योंकि खण्ड-खण्ड मिट गया है । यह खण्ड-खण्ड है, इसलिए यह वाणी खण्ड-खण्ड निकलती है। अखण्ड आत्मा पूर्ण हो गया तो वाणी भी घनघोर एक धार निकलती है । ओम..... ओम्कार धुनि सुनि..... समझे न ? ओमकार ध्वनि सुनकर अर्थ गणधर विचारे, अर्थ गणधर विचारे । वे यह सब आगम । सन्तों के द्वारा कथित यह सब आगम है । है भगवान की वाणी के अनुसार, आत्मा में दशा हुई और फिर यह वाणी स्वयं स्वतः निकली है। भाई ! तुझे सुख चाहिए हो तो प्रभु तो अन्तर में आनन्द है, हाँ ! उस आनन्द को देख न !
उपजे मोह विकल्प से समस्त यह संसार । अन्तर्मुख अवलोकते विलय होत नहीं बार ॥
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कहो, कामदार! श्रीमद् का पढ़ा है या नहीं। यह उसकी लाईन है। समझे कुछ ? यह अन्तिम लाईन थी । जब श्रीमद् का देह छूटने का लगभग काल था, उसके पहले की यह अन्तिम कड़ी है । 'उपजे मोह विकल्प से समस्त यह संसार, अन्तर्मुख अवलोकते...... इस अन्तर्मुख चैतन्य प्रभु के सन्मुख देख । 'विलय होत नहीं बार' इस शुभाशुभ राग का नाश होने में देर नहीं। भगवान ! तुझमें नहीं, इसलिए नाश हुए बिना नहीं रहेगा।
इसी सुख को मोक्ष का सुख कहते हैं। लो ! अन्तिम शब्द है न ? 'सो सिव -सुक्खँ भणंति' यह चौथा पद है। उसे मोक्ष के सुख की वानगी (नमूना) कहते हैं । माल