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________________ २९२ गाथा-९३ मैं मर गयी हूँ, सब बोली थी। स्वयं ही बोली थी परन्तु इन लोगों को विश्वास नहीं आया, दो वर्ष तक विश्वास नहीं आया। फिर यह हिम्मतभाई और सब वहाँ निर्णय कराने गये थे। हमारे हिम्मतभाई ये तो पहले वहाँ तक निर्णय किया कि यहाँ से तुझे लेंगे तो तू तेरी माँ को पहचानेगी? तेरे पिता को पहचानेगी? हाँ। तेरी माँ को पहचानेगी, हाँ! तेरे काका को पहचानेगी? हाँ। तू गीता को पहचानेगी? यह क्या पूछते हो? गीता तो यह रही। वहाँ कहाँ गीता थी? पण्डितजी! ऐसा जबाव दिया। इन पण्डितजी ने जरा हाँ, हाँ (कराने को पूछ लिया)। तेरी माँ को पहचानेगी? तेरे बापू को पहचानेगी ? तेरे काका को पहचानेगी? वहाँ गीता को पहचानेगी? गीता को पहचानेगी क्या कहते हो? गीता तो यह रही। ऐसा कहा न? भाई ! पौने छह वर्ष में (बोली), ढाई वर्ष में जातिस्मरण भव का हुआ। तुम्हें फुरसत कब (थी)? अभी यहाँ चार दिन आ गये है। आठ-आठ दिन रहकर । वह तो बहुत बार आती है, मनसुखभाई! कभी मुश्किल से आते हैं, किसी कारण, वह तो बहुत बार आती है। मनसुखभाई ! यह तो जगजीवनभाई उसके काका होते हैं न! इसलिए फिर आ जाती है। कहो समझ में आया? आहा...हा...! कहते हैं, भाई! प्रत्यक्ष बात है। उसमें कहते हैं, ऐसा होता होगा? परन्तु होता है, यह हुआ है न, समझ में आया? इसी तरह आत्मा तीनों काल ऐसा का ऐसा भगवान तेरे समीप में विराजमान है अर्थात् कि तू स्वयं है। अरे! तुझे देखने का अवसर तुझे नहीं, भगवान! उसके सन्मुख की रुचि करना, यह ठीक है। वह भी अभी बैठा नहीं और यह रुचि बाहर की, पुण्य, दया, व्रत और भक्ति जो व्यवहार अनादि से बाहिरबुद्धि से और बाहर में अपनापन मानकर किया है। समझ में आया? यहाँ कहते हैं कि ज्ञानचेतना भगवान आत्मा... ! यह समयसार का श्लोक है। ज्ञानचेतना को अथवा आत्मानुभूति को आनन्दसहित केलि कराना।अमृतचन्द्राचार्य कहते हैं, भाई ! प्रभु तू रुचि तो कर, भाई! कि भगवान आत्मा परमात्मा मैं ही हूँ, हाँ! और इस परमात्मा का विस्तृत पर्याय में हो, वह सिद्ध है। समझ में आया? यह परमात्मा पूर्णानन्द का प्रभु मैं स्वयं हूँ। मुझमें अपूर्णता नहीं, विपरीतता नहीं। वस्तु में अपूर्णता और विपरीतता कहाँ से आयी? वस्तुरूप से परमानन्द के स्वभाव का पिण्ड, चिपिण्ड,
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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