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________________ २०२ गाथा-८८ पर्याय में, एक समय की दशा में राग है तो जहाँ पर्यायबुद्धि गयी और वस्तु दृष्टि हुई तो वस्तु तो मुक्त है। वस्तु में बन्ध है ? पदार्थ में बन्ध है ? पदार्थ के बन्ध की व्याख्या क्या ? पदार्थ बन्धन में है, इसका अर्थ कि पदार्थ है ही नहीं । (परन्तु ) ऐसा है ही नहीं । समझ में आया ? पदार्थ शुद्ध ध्रुव चैतन्य शाश्वत् अनन्त आनन्द का सागर है, उसकी पर्याय में एक समय का राग है, राग में कर्म का निमित्त भी है, वह तो पर्यायबुद्धि, अंशबुद्धि में दिखता है परन्तु जहाँ सम्यग्दृष्टि अर्थात् द्रव्यदृष्टि का भान हुआ, वस्तु अखण्ड ज्ञमूर्ति की दृष्टि हुई तो द्रव्य तो मुक्त है। समझ में आया ? मुक्त अर्थात् पर्याय में भी मुक्तिका - छूटने के पन्थ के मार्ग में वह है । सम्यग्दृष्टि बँधने के मार्ग में है ही नहीं । आहा...हा...! समझ में आया ? भगवान आत्मा, यह राग और कर्म का सम्बन्ध वस्तु में कहाँ है ? सम्यग्दृष्टि की दृष्टि तो द्रव्य पर है । द्रव्य अर्थात् वस्तु, तो वस्तु तो पूर्ण मुक्त ही है। पूर्ण मुक्त की जहाँ दृष्टि हुई, वहाँ राग और कर्म के निमित्त के बन्ध की पर्याय का ज्ञान रहा, आदर नहीं रहा । समझ में आया ? यह भगवान आत्मा अपने पूर्णानन्द और ज्ञायकस्वभाव की प्रीति, गाढ़ रुचि हुई तो स्वरूप मुक्त है तो पर्याय में भी मुक्त की दशा सन्मुख, मुक्ति के पन्थ में चला । यह मुक्ति में जाता है, अब मुक्ति में ही पर्याय जाती है। मुक्ति की ओर जाती है, बन्धकी ओर नहीं। जरा समझ में आया ? जरा समझ में आया - ऐसा कहते हैं । अतीन्द्रिय सुख का परम प्रेम रखनेवाला... मोक्षनगर का पथिक (बन जाता है)। नगर अर्थात् पूर्णानन्द की प्राप्ति; मुक्तदशा की ओर उसकी गति है; बन्धभाव की ओर गति नहीं। समझ में आया ? आत्मा का स्वीकार होना चाहिए न ? राग और कर्म निमित्तरूप होने पर भी, राग अवस्था में होने पर भी, वस्तु की दृष्टि करना और वस्तु में दृष्टि लगाकर सम्यक् परिणमन करना, वह तो दृष्टि का जोर है न ? राग और कर्म होने पर भी, मुझ में नहीं है। समझ में आया ? ऐसी अपनी चैतन्य ज्ञायकभाव की, अतीन्द्रिय आनन्द की परम गाढ़ रुचि जम गयी । बन्ध है, राग है, वह जानने योग्य है । जानने का प्रयोजन है, बस ! इस तरफ दृष्टि गयी तो वह अन्दर छूटने के मार्ग का पथिक है।
SR No.009482
Book TitleYogsara Pravachan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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