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गाथा - ८५
अन्वयार्थ – ( जहिं अप्पा तहिं सयल - गुण) जहाँ आत्मा है वहाँ उसके सर्व गुण हैं। (केवल एम भांति ) केवली भगवान ऐसा कहते हैं (तिहि कारणाएँ जोइ फुडु विमलु अप्पा मुणंति ) इस कारण योगीगण निश्चय से निर्मल आत्मा का अनुभव करते हैं ।
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८५, आत्मानुभव में सब गुण हैं ।
जहिं अप्पा तहिं सयल - - गुण केवल एम भांति । तिहि कारणएँ जोइ फुडु अप्पा विमलु मुणंति ॥ ८५ ॥
आहा...हा... ! आचार्य को केवली की साक्षी देनी पड़ी, बापू ! जो सर्वज्ञ है न ! जो केवलज्ञानी प्रभु है न! उन्हें एक सेकेण्ड के असंख्य भाग में तीन काल - तीन लोक की पर्याय में परिपूर्णता जानने पर उसमें सब ज्ञात हो गया। पानी में देखने पर, पानी में नजर पड़ने पर, पानी में, ऊपर जो तारे होते हैं, वे पानी में देखने पर दिख जाते हैं। ऐसे ही भगवान आत्मा की निर्मल पर्याय देखने से तीन काल - तीन लोक उसमें ज्ञात हो जाते हैं। पानी स्वच्छ होता है न! स्वच्छ पानी... ऐसी नजर पड़े (पानी में ) वहाँ (दिखता है) । इसे ऐसे नजर (तारों की तरफ) नहीं करनी पड़ती। वहाँ नक्षत्र, तारे सब पानी की स्वच्छता में ज्ञात हो जाते हैं। ऐसे भगवान आत्मा अपने अवलम्बन से प्रगट हुई, ज्ञानगुण की परिपूर्ण केवलज्ञान पर्याय, उसमें देखने से तीन काल - तीन लोक उसमें आ जाता है, ज्ञात हो जाता है।
मुमुक्षु : पानी में तारे साथ हैं न ?
उत्तर : तारे कहाँ थे ? तारे तो वहाँ हैं । तारे सम्बन्धी जो जल की स्वच्छता है, वह वहाँ है । तारे वहाँ हैं ? ऐसे ही आत्मा की स्वच्छता की पर्याय में क्या लोकालोक है ? लोकालोक सम्बन्धी का अपना ज्ञान वहाँ है, वह ज्ञान वहाँ ज्ञात हो जाता है, वह ज्ञान है । आहा...हा... ! वहाँ क्या नीम यहाँ आ जाता है ? हमारे सेठ ठीक हैं, धीरे से लड़की डालते हैं, पानी में तारे साथ हैं न? पानी में है या नहीं ? तारे वहाँ होंगे, तारे तो वहाँ हैं । पानी की