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योगसार प्रवचन (भाग-१)
फिर दूसरा कारण नहीं । स्वयं परिणाम बंध का कारण और कर्म भी बंध का कारण (ऐसा नहीं है)।
मुमुक्षु – कारण-कार्य मीमांसा में कहा है, वह निर्णित होना चाहिए न?
उत्तर - सब आ गया। यह कारण है, वहाँ दूसरा भले निमित्त कहने में आवे, यह तो फूलचन्दजी ने बहुत कहा है। पीछे से कहा। फिर काया को निमित्त कहने में आता है - ऐसा थोड़ा कहा। क्या करे परन्तु? कहीं बचाव करके फिर दूसरी ओर आ जाए उन्होंने यह डाला है। काया से धर्म नहीं होता और काया से बंध नहीं होता। उसमें डाला है। निमित्त कहलाता है, ऐसा कहा है न? परन्तु उसका अर्थ क्या? कहो, रतिभाई ! यह सब विवाद चारों ओर है। हैं ? आहा...हा...!
श्रोता - चारों ओर झगड़ा वर्तमान में वर्तता है।
कहते हैं, भगवान आत्मा अपने शुद्ध आनन्द स्वभाव को भूलकर कहीं भी पुण्य -पाप के भाव में और पर में सुख है – ऐसी मान्यता के परिणाम, उसे संसार के बंध का कारण है और उसी परिणाम से गुलाँट खाने से भगवान आत्मा शुद्धस्वरूप प्रभु है, उसकी सन्मुखता के श्रद्धा-ज्ञान और विश्वास के परिणाम और स्थिरता के परिणाम, बस! वह परिणाम ही मोक्ष का कारण है। कहो, देह की क्रिया मोक्ष का कारण नहीं है - ऐसा कहते हैं । वे कहते हैं, देह की क्रिया मोक्ष का (कारण है)।
मुमुक्षु - सिद्ध किया है कि देह से मोक्ष होता है।
उत्तर – धूल में भी नहीं होता... व्यर्थ का... ऐसा का ऐसा.... व्यवहार का कथन किया, वहाँ चिपट पड़ा। आहा...हा...! गले पड़ा गले।
मुमुक्षु - शरीर से मोक्ष होता है।
उत्तर – शरीर से मोक्ष होता है और शरीर से बंध होता है... भगवान को देखो, उदय भाव है, वह क्षायिक का कारण होता है। अरे... ! सुन न... यह तो कहते हैं कि निर्जरा हो गयी, इस अपेक्षा से उसे क्षायिक कहा है।
यहाँ तो कहते हैं कि मोक्ष भी आत्मा के शुद्धपरिणाम से होता है; देह की क्रिया के