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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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की एकता में लवलीन है। अपने स्वरूप में श्रद्धासहित, ज्ञानसहित लीनता होना, वही सच्ची उत्कृष्ट बात है। वही भाग्यवान है.... वही भाग्यवान है। वही भगवान है.... आहा...हा... ! अतीन्द्रिय ज्ञान और सुख का स्वामी है... वह अतीन्द्रिय ज्ञान और सुख का स्वामी है। वह शीघ्र मोक्ष की प्राप्ति करेगा। वह अल्प काल में केवलज्ञान को प्राप्त करेगा। कहो! यह भगवान आत्मा सच्चिदानन्दप्रभु का जो अन्तर एकाग्र होकर ध्यान करता है, उसे ही यहाँ धन्य कहा जाता है। कहो, समझ में आया?
__फिर आत्मानुशासन का एक दृष्टान्त दिया है जिन महात्माओं का आभूषण उनके शरीर पर चिपटी हुई रज है.... अब मुनि की उत्कृष्ट बात लेते हैं। महात्मा दिगम्बर सन्त आत्मध्यान में इतने मस्त होते हैं कि जिन्हें वस्त्र का धागा भी नहीं होता। आत्मा के आनन्द में अतीन्द्रिय आनन्द में मस्त हों, उन्हें मुनि कहते हैं। जिन्हें शरीर का गहना क्या? गहना... गहना... इस शरीर में लगी हुई रज। शरीर में रज लगी, वह उनका गहना (है)। पूर्णानन्द का नाथ जिसमें स्वसंवेदन की उग्रता में पड़े हैं – ऐसे सन्तों को रज, वह गहना है। कहते हैं । शरीर में मैल चढ़ा हो और रज पड़े, वह उनका गहना।
जिनके बैठने का स्थान पाषाण की शिला है.... आहा...हा...! बादशाही करते हैं। शिला पर बैठकर अन्दर में ध्यान (करते हैं)।
मुमुक्षु - आरामकुर्सी चाहिए न?
उत्तर - आरामकुर्सी.... मर गये, आरामकुर्सी में – ऐसे पड़े वहाँ दरबार मर गये, कृष्णकुमार ! ऐ... मुझे यहाँ कुछ होता है, असुख होता है, असुख होता है – ऐसा कहा। रानी को बुलाओ, जहाँ रानी आयी, वहाँ तो ऐसा हो गया.... समाप्त! डाक्टर आये, धूल में क्या हो? आरामकुर्सी.... आरामकुर्सी में आराम ले लिया....लो! अन्तिम । आत्मा के भान बिना सब व्यर्थ है।
आत्मज्ञान की लक्ष्मी जिसने प्राप्त की है और उसमें विशेष लीन है, वह तो कहते हैं कि उसके बैठने का स्थान शिला है। जिनकी शैय्या कंकड़वाली भूमि है,.... कंकड़वाली भूमि वह उनकी शैय्या। आहा...हा...! दिगम्बर मुनि वस्त्ररहित, जंगल में आत्मा के ध्यान में रहते हो.... कंकड़... कंकड़ हों, इतने-इतने कंकड़ (हो) ऐसे चुभते