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योगसार प्रवचन ( भाग - १ )
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सायला ! वहाँ पहले सेठ था, अच्छा सेठ था, उसके पुत्र का विवाह था, पुत्र का विवाह, राजा को सेठ के प्रति प्रेम, सेठ को राजा के प्रति प्रेम, किसी का (किसी के साथ) कपट नहीं। स्पष्ट बतावे वह तो । बड़ा कमरा था, उसमें दाने की थप्पियाँ डाले वैसे रुपये के थैलों से भरी हुई थप्पियाँ थीं। राजकुमार साथ में (था), राजा का लड़का साथ में था । सेठ के पुत्र का विवाह हो, इसलिए राजा को बुलाया। लड़का ऐसे-ऐसे हाथ मारता है, वे चाँदी की थैलियाँ पड़ी थीं। रुपये की थैलियों की थैलियाँ भरी हुई, हाँ ! पूरी लाइन... बापू ! यह क्या है ? राजा को कहे। भाई ! अपने सेठ बहुत रुपयेवाले हैं और यह रुपये यहाँ रखे हैं । क्यों ? कि उनका जाय तो अपने को भरना पड़े - ऐसा उन्हें अपने पर विश्वास है । राजा ऐसे मीठे थे, उनके पैसे खुले यहाँ रखे हैं। एक थैली जाये तो अपने को कहे, तो अपने को भरना पड़े। उन्हें अपने पर ऐसा विश्वास है, कोई ले नहीं, कोई इन्हें छुए नहीं । निहालभाई ! उस समय राजा ऐसे ( थे)। ऐसा नहीं कि इतना सब उनके पास ? मेरे पास नहीं और उनके पास इतना सब - ऐसा नहीं था । ( राजा के लड़के को ऐसा कि ) यह क्या है ? (पहले) छुआरे बँटते न? छुआरे ... छुआरे बँटते तो राजा के कुँवर ने हाथ (लगाया कि) यह छुआरे भरे है ? छुआरा नहीं, भाई ! कुँवर ! यह तो रुपये, सेठ के नगद रुपये हैं । इतने खुले ? खुले कहाँ, यह तो अपने सेठ को अपने पर विश्वास है। हम राजा के पुत्र हैं, पुत्र की लक्ष्मी राज की है - ऐसा सोचकर उसे दरकार नहीं। कोई ले जायेगा या कोई लूटेगा - ऐसी दरकार नहीं। इसलिए खुला रखा है। ऐ... ई ... !
एक व्यक्ति के घर में एक बड़े नेता को भोजन करने बैठाया और जहाँ खाने के लिए चाँदी की दस हजार की थाली रखी ( तो कहता है) तुम्हारे ऐसे कहाँ से ? स्वयं साधारण बेचारे को नेता बनाया है, घर में कुछ न हो, समझने जैसा होता है। उस साधारण गृहस्थ के घर में दस हजार के चाँदी के थाल हों, पाँच-दस लाख, पच्चीस लाख की पूँजी हो तो दस हजार के चाँदी के थाल (रखे हों) (तो वह कहे ) तुम्हारे यह कहाँ से ? अरे... ! ऐसी तुम्हें ईर्ष्या ! वह तो राजा की मीठी नजरें, समझें न ? सब लाईन ही दूसरी थी । समझे, पुण्य भी अलग (थे) ।
यहाँ परमात्मा स्वयं.... ओ...हो... ! उसका लग्न शुरु करना... उसमें थैलियों की