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योगसार प्रवचन ( भाग - १ )
अग्नि किसी भी विषय या पर का आक्रमण होने नहीं देती । अग्नि (के ऊपर) आक्रमण होता है ? सूक्ष्म जीव आकर उसे दबा दें ? समझ में आया ? जलहल ज्योति... जलहल ज्योति, चैतन्यप्रकाशमय, पाचकमय और दाहकस्वभावमय, उसे कोई आक्रमण करके ढाँक दे - ऐसा वह तत्त्व नहीं है। जब वह संसार - पर्याय में होता है, तब वह स्वयं ही अपने आत्मिक ध्यान की अग्नि जलाकर अपने कर्ममल को भस्म करके शुद्ध हो जाता है। लो, ऐसी अनुपम अग्नि, कर्म ईंधन की दाहक । लो! यहाँ कर्म ईंधन की दाहक (कहा ) । जला देती है। आत्मिक बल की पोषक है, और सदा ज्ञान द्वारा स्व पर प्रकाशक है । ऐसा लिया। आत्मबल की पोषक है, यह बल का डाला। इन नौ दृष्टान्तों से आत्मा को समझकर .... देखो ! ऐसा लिया, दृष्टान्तों से समझकर... दृष्टान्तों में आत्मा नहीं है। समझकर पूर्ण विश्वास प्राप्त करना चाहिए। भगवान आत्मा को इन नौ दृष्टान्तों से पहचानकर अपने स्वभाव का पूर्ण विश्वास करना चाहिए। कहो, यह तो सरल बात है या नहीं ? यह दृष्टान्त सरल... समझ में आया या नहीं ? हैं ?
मुमुक्षु दृष्टान्त भी आप समझाओ (तब समझ में आते हैं)।
उत्तर – लो, समझाओ, तब समझ में आते हैं.... यह ५७ गाथा (पूरी हुई) । यह तो दृष्टान्त थे इसलिए (लम्बी चली ) । चालीस मिनिट हो गये ।
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देहादिरूप मैं नहीं हूँ – यही ज्ञान, मोक्ष का बीज है
देहादिउ जो परू मुणइ जेहउ सुण्णु अयासु ।
सो लहु पावइ बंभु परू केवलु करइ पयासु ॥ ५८ ॥
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देहादिक को पर गिने, ज्यों शून्य आकाश ।
लहे शीघ्र परब्रह्म को, केवल करे प्रकाश ॥
अन्वयार्थ – ( जेहउ अयासु सुण्णु) जैसे आकाश परपदार्थों के साथ सम्बन्धरहित है, असङ्ग अकेला है ( देहादिउ जो परू मुणइ ) वैसे ही शरीरादि को जो अपने आत्मा