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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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दिखते हैं। आगे-आगे जाते हों कोई मनुष्य नहीं दिखता.... बारीक...बारीक मूंग के दाने जितने होते हैं, रेत में कोई-कोई जगह, हाँ! ऐसा चिकना... ऐसा चिकना, हाँ! इसलिए उसे मगसेलियो पत्थर कहते हैं। देखा है कभी? ख्याल नहीं?
इसी प्रकार यह भगवान मगसेलिया पत्थर जैसा है। राग को छूने नहीं दे, राग का पानी अन्दर प्रविष्ट न हो। समझ में आया? कहो, भगवानभाई! देखा है या नहीं मगसेलिया पत्थर? कोरा लगे, निकला तो ऐसा का ऐसा। मगसेलिया अर्थात् उस स्वभाववाला, ऐसा। ऐसा स्वभाव, बहुत चिकना स्वभाव। कहो, समझ में आया?
स्वर्ण की उपमा – आत्मा शुद्ध स्वर्ण समान परम प्रकाशवान ज्ञानधातु से निर्मित.... लो! वह सोना धातु है, स्वर्ण धातु । यह आत्मा ज्ञानधातु, उस स्वर्ण समान अनादि विराजमान है। अमूर्तिक एक अद्भुत मूर्ति है। सोने को ऐसे देखो तो सोने की मूर्तियाँ आहा...हा...! लोग देखने निकलें, हाँ! समान मूर्ति हो, सोने की और पाँच सेर की मूर्ति हो, कारीगरी (हो).... आहा...हा... ! यह आत्मा असंख्य प्रदेशी अकेली स्वर्णमयी मूर्ति है। समझ में आया? चैतन्यधातु है।
संसारी आत्मा खान में निकला हुआ धातु, पाषाण, स्वर्ण की तरह अनादि से कर्मरूपी कालिमा से मलिन है। पर्याय में, हाँ! अग्नि आदि के प्रयोग से जैसे सोने की धातु, पाषाण से अलग करके शुद्ध कुन्दन की जाती है.... लो! सोने को जैसे अग्नि का निमित्त मिलने से अपने उपादान से जैसे सोना शुद्ध हो जाता है। इसी प्रकार आत्मध्यानरूपी अग्नि द्वारा.... भगवान आत्मा अपने स्वरूप की एकाग्रतारूपी ध्यान की अग्नि से यह भगवान आत्मा, स्वर्ण की तरह सोलहवान... सौ प्रतिशत सोना... क्या कहलाता है ? सौ कैरेट का, ऐसा आत्मा सौ प्रतिशत स्वर्ण स्वभाव से है, स्वभाव से है। सोलहवान ही स्वभाव से है। उसमें एकाग्र होवे तो पर्याय में सोलहवान (पूर्ण शुद्ध) हो जाता है – ऐसा स्वर्ण समान है।
___चाँदी-समान । चाँदी-समान परमशुद्ध और निर्मल, ऐसा। एक क्षेत्र में साथ रहा होने पर भी उसकी सफेदी-वीतरागता जाती नहीं है। वीतरागतारूपी सफेद उसमें भरी है। कहो, यह तो सबके प्रिय चाँदी और स्वर्ण के दृष्टान्त हैं।