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गाथा-५७
भगवान... जैसे दूध को मथने से अथवा जमाने से जैसे दही होता है, वैसे भगवान आत्मा की एकाग्रता होने से सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र का दही प्रगट होता है। उसमें विशेष एकाग्रता से उसमें से इसे घी – मोक्ष की दशा प्रगट होता है। दूध, दही और घी – तीनों की उपमा आत्मा को है। कहो, समझ में आया इसमें ? आत्मा की जागृति ही दहीरूप होना है। ऐसा कहते हैं । देखो ! जागृति।
___ तत्पश्चात् जैसे दही को बिलोने से घी सहित मक्खन निकलता है, उसी प्रकार आत्मा की भावना करते-करते आत्मानुभव होता है, जो परमानन्द देकर आत्मा को घी-समान बतलाता है। अथवा केवलज्ञान हो जाता है, मूल तो ऐसा है। समझ में आया? कितना निकल जाए तो भी केवलज्ञान (कम नहीं होता)। दूध के समान उसका एकाग्र ध्यान करने से दही के समान मिठास (होती है) और विशेष एकाग्रता करने से दही में से घी निकलता है - ऐसा केवलज्ञान हो जाता है। कहो, यह दृष्टान्त अन्दर समझने के लिए है। दृष्टान्त में से आत्मा निकले ऐसा है ? यह भी रचना अद्भुत है ! कल्पना सही न!
स्वयं ही दूध है, स्वयं ही दही है, स्वयं ही घी है। मुमुक्षु को निज आत्मारूपी गोरस का ही निरन्तर पान करना चाहिए।लो! यह दूध, दही और घी भगवान आत्मा है। आहा...हा...! शुद्ध चैतन्य का सत्व, वह पूरा दूध समान, उसे प्राप्त करने से अर्थात् उसका मेल-एकाग्र करने से सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र का दही निकलता है और उसमें (विशेष) एकाग्र होने से केवलज्ञान का मक्खन अथवा घी निकलता है – ऐसा यह आत्मा दूध, दही और घी जैसा है। लो! यह तो सरल दृष्टान्त है । दूध, दही और घी में से आत्मा निकले ऐसा है ? दूध, दही और घी तो उसकी उपमा है, वह तो आत्मा की उपमा है।
अब पाँचवाँ दृष्टान्त.... यह तीन होकर एक है, हाँ! समझ में आया? रत्न का, दीपक का, सूर्य का, और यह तीन होकर एक – ऐसे चार हुए। अब, इसमें पाषाण का है। उसमें पीपल का है, अपने अन्त में दिया है न? मूल पाठ में पाषाण है और मैं जो यह बारम्बार देता हूँ, उस पीपल का दृष्टान्त... पीपल ! वह इसमें है। आत्मा पीपल के समान है। पीपल में जैसे चौंसठ पहरी चरपराहट भरी है न? पीपल का दाना होता है न? चौंसठ