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________________ ३७८ गाथा-५५ गोला ही सम्पूर्ण भिन्न है। मन, वाणी, देह से पूरी चीज ही परमात्मस्वरूप भिन्न है – ऐसे भिन्न को भिन्न देखे, देखकर अनुभव करे नहीं और बाहर की क्रिया से धर्म माने, मन-वचन से धर्म माने, पुण्यपरिणाम से धर्म माने, तीर्थयात्रा पूजा से धर्म मानता है, वे तो भगवान के दर्शन से समकित होता है - ऐसा कहते हैं। आहा...हा...! इस भगवान के दर्शन से समकित होता है। भगवान के दर्शन से होता है, शुभभाव होता है। भाव है, वह शुभ है, वह कहीं धर्म नहीं है, संवर-निर्जरा नहीं है। कितने ही बड़े-बड़े (विद्वान्) कहते हैं, आस्रव चाल घटती है, संवर बढ़ता है... परन्तु भाई! परद्रव्य है, वहाँ लक्ष्य जाये अर्थात् शुभभाव (की) वृत्ति उत्पन्न हो (उस) शुभ की दिशा पर के प्रति है और स्वभाव की-शुद्ध की दशा अन्तर के प्रति है। कहो, समझ में आया इसमें? कहते हैं, मेरे शुद्ध उपयोग में कुछ है नहीं। है न? फिर थोड़ा सा डाला है। वह अशुद्ध व्यवहार... सर्व व्यवहार कहा है न? अशुद्ध निश्चय से कहे जानेवाले, रागादि भावों से, अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से कहे जानेवाले कार्माण आदि शरीरों के सम्बन्ध से; उपचरित असद्भूत व्यवहारनय से कहे जानेवाले स्त्री, पुत्रादि, चेतन और धन आदि अचेतन पदार्थों से मैं भिन्न हूँ। यह तो स्पष्टीकरण ठीक किया है। सब व्यवहार का अर्थ किया है। सद्भूत व्यवहार से कहे जानेवाले गुण-गुणी के भेदों से भी मैं दूर हूँ। लो! मैं समस्त व्यवहार की रचना से निराला एक परम शुद्ध आत्मा हूँ।आहा...हा...! स्वयं परमात्मा है, उसे किसी राग और पर के साथ कुछ सम्बन्ध नहीं है – ऐसे आत्मा का अन्दर में ध्यान करना और श्रद्धा-ज्ञान करना ही मोक्ष का मार्ग है। बहुत से कहते हैं, ऐसा कहे और फिर वापस (मन्दिर बनाते हैं)। इन मलूकचन्दभाई को कहते हैं, मन्दिर अच्छा बनाना। रामजीभाई ! इन्हें बहुत कहते हैं। अच्छा करना, अमुक करना, अमुक करना। ए...ई... ! यह कहें परन्तु पैसा कहाँ से लाना? तुम्हें पैसा लाने को कहा जाये? इतने अधिक पैसे लाना कहाँ से? कहो, समझ में आया? वह तो शुभभाव होता है, तब यह सब वस्तुएँ होती हैं। बाकी होना हो, तब होता है। शुभभाव होता है – भक्ति का, पूजा का, मन्दिर होवे तो ठीक, देव-दर्शन होवे – ऐसा भाव
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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