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योगसार प्रवचन ( भाग - १ )
समझ में आया? यह महाराज, यह राजा, सब कहलाते हैं न ? सब मोटर वोटर चलनेवाले..... लाखों-करोड़ों मनुष्यों को मारें, मछलियों को मारें, माँस खायें, शराब पिये, परस्त्री के लम्पटी – ये सब नरक के मेहमान होते हैं। मार खाने के लिए... यहाँ तो खम्बा - खम्बा होती हो, सब मरकर नीचे गये। यह राजा, महाराजा, सब वहाँ (गये हैं), हाँ ! वहाँ जार्ज -वार्ज और एडवर्ल्ड और सब । आहा... हा...! और साढ़े तीन करोड़, पाँच-पाँच करोड़ के बंगले में सोते हों, हैं ?
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मुमुक्षु - देरी क्या ? किसकी लगे ?
उत्तर - किसकी लगे ? पानी का पत्थर बड़ा भारी हो, वह पानी में साथ पड़े नीचे । इसी प्रकार अकेला पाप । आत्मा को भूलकर नरक का पाप (किया हो) यह पाप का बोझ बढ़ा वह नीचे नरक में जाता है । कहते हैं कि उसकी प्रतिकूलता नरक में (बहुत है ) । ऐसा यहाँ तो शरीर का वर्णन करना है, हाँ! जैसे ग्लानिकारक है, खराब है, मल-मूत्र से भरपूर है, नारकी.... खारा पानी, अंग छेद इत्यादि-इत्यादि... नरकवास में क्षण भर भी साता नहीं है। कोई उसमें सुखकारी नहीं है - ऐसा ।
मानव का यह शरीर भी नरक जैसा है। लो ! यहाँ तो यह उपमा दी, देखो ! आहा...हा...! क्या कहना चाहते हैं आचार्य ? कि जैसे नरक में उत्पन्न होनेवाले, बड़े महाराजा मरकर नरक में गया हो तो हाय... हाय... ! अर ... र... यह क्या है ? उसे पूर्वभव का पता नहीं होता कि मैं एक राजा था और मरकर (यहाँ आया हूँ । अर... र... क्या है यह ? जहाँ उत्पन्न हो वहाँ सिर पर मद का पूडा होता है । मद का पूडा जैसा उत्पत्ति का स्थान होता है वहाँ उत्पन्न होता है और उत्पन्न हो साथ में नीचे छत्तीस प्रकार के शस्त्र होते हैं। नीचे छत्तीस प्रकार के शस्त्र, उसमें गिरे एकदम ! टुकड़े। यहाँ अभी महाराज को डोलिया में निकालते हों, बड़े राजा आदि को डोलिया में निकालते हैं । डोलिया ... डोलिया, समझते हो ? बड़ा पलंग हो, हाथ में होका दिया हो, सिर पर खण्डेल बँधाया हो.... क्या कहलाता है उसकी ? पालकी ! यहाँ पालकी निकलती हो, वहाँ नरक में पोढ़े हों। हाय... ! अरे ! यह अवतार क्या है यह? यह क्या है? कितने काल (रहना है ) ? कैसी स्थिति ? दूसरे परमाधामी आते हैं (और कहते हैं) यह नरक का स्थान है पापी ! तुमने पाप किया,