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गाथा-५०
___ पाँच इन्द्रियों के दृष्टान्त दिये हैं न? जैसे हाथी स्पर्श में वशीभूत हो गया है न? हाथी स्पर्श इन्द्रिय में वशीभूत हो गया है; मछली रस में (वशीभूत हो गयी है)। मछली को (खाने में) रस होता है न? खाने में जरा आटा दे तो भी उसमें रस (आता है)। मछली को जाल में डालते हैं न? पानी में लोहे का कटिला जाल होता है न? उसमें आटा डालते हैं, आटा खाने आवे तो मछली वहीं पड़ जाये ऐसी लीन हो गयी है, मछली रस में लीन हो गयी है । भँवरा, कमल में (लीन हुआ है)। कमल इतना हो उसमें लिपट जाता है, बन्द हो जाता है, रसलीन हो गया है। फिर हाथी आकर पूरा कमल खा जाता है परन्तु उसके प्रेम को नहीं छोड़ता और पतंगा, दीपक की ज्योति में (लीन होता है)। लो, समझ में आया? पतंगा दीपक की ज्योति में भस्म हो जाता है। ऐसी बत्ती देखे तो.... ऐसा जाये। विषय के प्रेम में पूरा शरीर भस्म हो जाये तो भी उसे पता नहीं रहता। कहते हैं कि यदि ऐसा प्रेम आत्मा में करे, वह भी तेरे पुरुषार्थ की गति का ही कार्य है। शरीर भस्म अर्थात् शरीर का कुछ भी हो परन्तु तुझे वहाँ नुकसान नहीं होगा। आहा...हा... ! समझ में आया? हिरण जंगल में पकड़े जाते हैं। लो न! कान का (संगीत का) शौकिन है न? सुनने में ऐसा लीन हो जाता है ऐसा! वीणा बजाते हैं फिर मग को मारते हैं। मग ऐसे सनने बैठा हो, ऐसे मुक्का मारते हैं । लीन हो गया है लीन, कहते हैं। समझ में आया?
दिन-रात आत्मा का ही स्मरण करना चाहिए। कहते हैं, जैसे इन पाँच इन्द्रियों के विषयों में, एक-एक में जैसे पाँचों लीन है, वैसे आत्मा में इसे लगन लगनी चाहिए। सम्यग्दर्शन में इसकी लगन लगे... सम्यग्दर्शन उसे कहते हैं कि आत्मा अखण्डानन्दमूर्ति की इसे अन्दर में लगन लगी हो। समझ में आया?
मुमुक्षु - दूसरे रस का वेदन तो इसे ख्याल में है।
उत्तर – ख्याल में है परन्तु यह चीज है या नहीं ऐसी? ख्याल में इसने क्या खड़ा किया है, वहाँ कहाँ ख्याल में है ? प्रतिक्षण नया खड़ा करके यह... यह है, त्रिकाली ऐसा है, उसका इसे लक्ष्य नहीं है। क्षण में वेदनेवाला है कौन? स्वयं त्रिकाली है। बात (यह है कि) इसे पड़खा बदलना नहीं आता।
भगवान आत्मा.... जैसा प्रेम वहाँ है... यह वेश्या की आसक्ति (होती है), परस्त्री