SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) २९७ दृष्टान्त सर्वार्थसिद्धि में दिया है, वह जरा ठीक लगता है। सामायिक का, यह आत्मा की सामायिक किसे कहें कि - एकत्वेन प्रथमं गमनं समयः, समय एव सामयिकं, समय प्रवर्तानमस्येति वापिगृह्य सामायिकं॥अ.७, सूत्र २१॥ आत्मा के साथ एकमेक हो जाना, आत्मामय हो जाना, वह सामायिक है। यह सामायिक लेकर बैठते हैं न? वह सामायिक कहाँ है? आत्मा का भान तो कुछ है नहीं, सामायिक करके बैठे, किसकी? धूल की सामायिक? जिसने आत्मा ज्ञानानन्दस्वरूप को देखा, जाना है, वह ज्ञान में लीन हो जाता है, उसे सामायिक कहते हैं। कहो, समझ में आया? सामायिक - सम-समतास्वरूप चैतन्य ज्ञान में ज्ञान की लहर में, लहर में लीन हो गया, जो समतास्वरूप कायम है, उसके अन्दर में वर्तमान पर्याय से समता में लीन हो गया, उसे सामायिक कहते हैं । समझ में आया? बहुत से यह सामायिक करते हैं या नहीं? हम सामायिक करते हैं ! ऐ....शोभाचन्दजी ! यह सब करते हैं, यह सब प्रतिमाधारी नाम धराकर सामायिक करते हैं, सबेरे-दोपहर सामायिक करते हैं। किसकी सामायिक? आत्मा जाने बिना कहाँ से होगी? पहले आत्मा ही कौन है, इसकी खबर बिना एकाग्र किसमें होगा? यह सब ऐसे के ऐसे.... आहा...हा...! मुमुक्षु - हिले-चले बिना स्थिर रहते हैं। उत्तर – हिले-चले कौन? शरीर नहीं चले, उसमें इसके बाप का क्या हुआ? आत्मा अन्दर हलचल करता है। खलबलाहट... पुण्य-पाप के विकल्प उठाकर मेरे हैं, और उस पर दृष्टि पड़ी है, वह सब खलबलाहट हो रहा है। णमोकार गिनता हो या भगवान के भजन का विकल्प उठता हो, वह विकल्प मेरा है (ऐसी) दृष्टि वहाँ पड़ी है। वस्तु ऐसी भिन्न है, उसका तो भान नहीं... भान नहीं और विकल्प पर दृष्टि है तो वह सामायिक में है या मिथ्यात्व में है ? मिथ्यात्व ही है। ऐ.... भगवानभाई! श्रोता – नये व्यक्ति। उत्तर - आ गये न अब, चौपट में आ गये अब। आत्मा कैसा है ? आत्मा कौन है ? यह जाने बिना, उसके साथ एकमेक कौन
SR No.009481
Book TitleYogsara Pravachan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendra Jain
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust
Publication Year2010
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy