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गाथा-३८
अन्वयार्थ – (जोई) हे योगी! (जोइहिं भणिउ) योगियों ने कहा है (जीवाजीवाहँ भेउ जो जाउइ) जो कोई जीव तथा अजीव का भेद जानता है (तिं मोक्खहँ कारण जाणियउ) उसी ने मोक्ष का मार्ग जाना है। (एउ भणइ) ऐसा कहा गया है।
३८ । जीव अजीव का भेद.... देखो! अब वापस संक्षिप्त में लाये, भेदज्ञान। एक ओर अजीव और एक ओर जीव, दोनों का पृथक् ज्ञान कर।
जीवाजीवहँ भेउ, जो जाणइ तिं जाणियउ। _मोक्खहँ कारण एउ, भणइ जोइ जाइहिं भणिउ॥३८॥
इसमें सोरठा डाले, दूसरे में क्या था? वैसी गाथा नहीं डाली। वापस यहाँ डाला, सोरठा डाला है ? हैं ? फर्क होगा, परन्तु दूसरे में कहीं लिखा नहीं।
जीवाजीवहँ भेउ, जो जाणइ तिं जाणियउ।
मोक्खहँ कारण एउ, भणइ जोइ जाइहिं भणिउ॥३८॥ हे धर्मी... योगियों ने.... तीर्थंकरों ने, सन्तों ने, केवलियों ने जीव-अजीव का भेद जान (– ऐसा कहा है)। जीव और अजीव का भेद जानना – ऐसा भगवान ने कहा है। दो में लाये अब, नौ में और सात में से निकालकर दो। एक ओर व्यवहार तथा एक ओर निश्चय। एक ओर अजीव तथा एक ओर जीव। समझ में आया?
जो कोई जीव तथा अजीव का भेद जानता है.... तिं मोक्खहँ कारण जाणियउ – उसने ही मोक्ष का मार्ग जाना है... जीव अर्थात् ज्ञायकस्वभाव अभेद वह जीव, बाकी सब अजीव। समझ में आया? यह जीव वह दूसरा जीव नहीं, इस जीव से सब जड़ वे (जीव) नहीं। राग, पुण्य, वह जीव नहीं। यह एक समय का भेदभाव भी वास्तव में अखण्ड जीव नहीं।
जीव तथा अजीव का भेद जानता है.... भगवान आत्मा ज्ञायकभावरूप सर्वज्ञस्वभावी पूरा जीव और इसके अतिरिक्त सब जीव का सम्पूर्ण स्वरूप नहीं। समझ में आया? इस अपेक्षा से सबको अजीव कहा जाता है। यह व्यवहार भी अजीव!