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योगसार प्रवचन (भाग-१)
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भगवान आत्मा की स्वाध्याय अन्तर में करने से निर्जरा होती है। आहा...हा...! समझ में आया? भगवान आत्मा एक ही शुद्ध चिदानन्द की मूर्ति अभेदस्वभाव की एकाग्रता करते ही मोक्ष होगा, दूसरे प्रकार से मोक्ष नहीं होगा। भ्रम के भुलावे में मत पड़ – ऐसा कहते हैं। आहा...हा...! भ्रम के स्थान बहुत हैं । भ्रम के स्थान भटकने के बहुत और भ्रम को छोड़ने का स्थान एक भगवान आत्मा है। आहा...हा...! समझ में आया?
जाम ण भावहु जीव तुहुँ णिम्मलअप्पसहाउ।
ताम व लब्भइ सिवगमणु जहिं भावहु तहिं जाउ॥२७॥
तुझे करना हो तो यह कर, ऐसा कहते हैं। समझ में आया? हे जीव! जाग तुहुं णिम्मल अप्प सहाउ ण भावहु क्या कहते हैं ? जब तक निर्मल आत्मा के स्वभाव की भावना नहीं करता.... लाख तेरे व्रत, नियम, पूजा, और भक्ति, और यह विकल्प शास्त्र के श्रवण व देने-लेने के विकल्प की जाल जहाँ तक करे, वहाँ तक आत्मा का मोक्षमार्ग नहीं है। समझ में आया? जब तक निर्मल आत्मा के स्वभाव की भावना नहीं करता.... इन सब विकल्पों की जालों को छोड़कर, भगवान पूर्णानन्द का स्वरूप अभेद चैतन्य में अनुभव न करे, तब तक ताम सिवगमणु ण लब्भई - तब तक तू मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। मोक्ष में गमन नहीं करेगा – ऐसा कहते हैं। मोक्ष में गमन ण लब्भई। पूर्णानन्द की ओर तेरा गमन-परिणमन नहीं होगा। आहा...हा...! बहुत बात की है, भाई!
बेचारे कितने ही लोग तो बाहर की प्रभावना के लिये जिन्दगी खो बैठते हैं, हैं? हम करें और बहुतों को लाभ हो, बहुतों को लाभ होता है... धूल भी लाभ नहीं है, अब सुन न ! बाहर के लिये मर-पीट कर जिन्दगी खो जाता है। समझ में आया? परन्तु जाम ण भावह जीव। जहाँ तक भगवान स्वभाव का पिण्ड प्रभु, उसकी ओर की श्रद्धा ज्ञान और चारित्र की भावना की शुद्धता की निर्विकल्पता की एकता न करे... समझ में आया?.... वहाँ तक मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकता। यह लाख तेरे बाहर के विकल्प द्वारा, व्यवहार द्वारा मुक्ति नहीं प्राप्त कर सकता। समझ में आया? यह सब तो प्रामाणित हो जाता है। ए...ई... बाबूभाई! (लोग) चिल्लाते हैं, कहते हैं। भगवान तेरा स्वभाव ऐसा है न परन्तु.... आहा...हा...!