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गाथा-२१
इसलिए? बहुत पैसावाला बताओ तो तुम पैसा लूटने के लिये बड़ा... बड़ा... बड़ा... कहते हो? ऐसा कहते हैं। तुम तो बहुत पैसेवाले हो, तुम तो ऐसे हो – ऐसा कहकर हमारे पास से कुछ लेना है? बड़ा बतलाकर हमारे क्या करना है? यह बड़ा बतलाकर छोटापना लूटना है, सुन न ! पैसा नहीं लूटना वहाँ तेरे पास से।
मुमुक्षु - डरपोकपना यहाँ काम आवे ऐसा नहीं है।
उत्तर - डरपोक-बरफोक यहाँ है ही नहीं। बनिया डरपोक जैसा, यहाँ डरपोक कहाँ आत्मा में था? ए... छगनभाई! 'रण चढ़ा रजपूत छूपे नहीं, चन्द्र छुपे नहीं बादल छाया, चंचल नारी को नैन छुपे नहीं, भाग्य छुपे नहीं भभूत लगाया।' राजा साधु हो तो उसका ललाट छुपा रहता होगा? यह तो बड़ा पुण्यवन्त प्राणी लगता है, वैभव छोड़कर (आया है)।वैभवशाली मनुष्य लगता है। समझ में आया? वैसे ही आत्मा भगवान अपने रणक्षेत्र में चढ़ा, आहा...हा... ! मैं तो परमात्मा और मुझमें कोई अन्तर नहीं। आहा...हा...! इस प्रकार अपनी दृष्टि में भगवान आत्मा को समभावी वीतरागरूप पूर्णानन्दरूप देखता हुआ, वीतराग में और आत्मा में कहीं अन्तर नहीं देखता। सिद्धान्त के सार को मायाचाररहित होकर प्राप्त कर जाता है। समझ में आया? यह अन्तरस्वरूप भगवान जैसा है, वहाँ जाकर स्थिर हो न ! बाहर के आचरण से मैं कुछ बड़ा हूँ – ऐसा बतलाना चाहता है ? समझ में आया? नग्नपना हुआ तो बड़ा हुआ, अट्ठाईस मूलगुण पालने से बड़ा हुआ – इनसे बड़ा है? माया है मूर्ख! समझ में आया? जिससे अन्दर भगवान बड़ा होता है, उसकी महिमा से तुझे तू देख न! उसकी शोभा से तू शोभित हो न ! पर की शोभा से शोभकर दूसरे को दिखाना है ? तुझे क्या करना है ? समझ में आया? आहा...हा...!
धर्मधोरी धुरन्धरा महाविदेहक्षेत्र में विचरे.... क्या कहा पहले? धर्म काल अहो वर्ते, धर्मक्षेत्र विदेह में.... देखो ! पहले काल लिया, क्षेत्र लिया, धर्मधुरन्धर (यह) द्रव्य लिया, धुरन्धर क्या कहा? बीस-बीस जहाँ गरजे धोरी धर्मधुरंधरा.... आहा...हा...! यह वस्तु ली। काल, उसका क्षेत्र, उसका द्रव्य, उसका भाव तो उसके पास, अन्दर है। ऐसे भगवान.... धोरी धर्म धुरन्धरा.... धोधमार! उन्होंने कहा है, हाँ! देखो तीर्थंकरों द्वारा जो दिव्यध्वनि प्रगट होती है, वही सिद्धान्त का मूल स्रोत है। सिद्धान्त का मूल स्रोत वहाँ